प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 13 जनवरी 2016 को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक
में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को मंजूरी दी गई। इस योजना का उद्देश्य यह
सुनिश्चित करना है कि किसानों को कम प्रीमियम का भुगतान करना पड़े और उन्हें पूरी
बीमित राशि का दावा जल्दी मिले। योजना किसानों की आर्थिक अनिश्चितता के माहौल को
कम करेगी। इससे लगभग साढ़े तेरह करोड़ किसान लाभान्वित होंगे।
प्रधानमंत्री
फसल बीमा के नाम वाली इस नई योजना में जहां प्रीमियम न्यूनतम डेढ़ से दो फीसद होगा,
वहीं
बीमा के क्षेत्र को और व्यापक कर दिया गया है। यह योजना इस साल खरीफ फसल पर (1
अप्रैल 2016 से) लागू होगी जो मौजूदा दो योजनाओं - राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना
(एनएआईएस) और परिवर्तित एनआईएस की जगह लेगी जिनमें कुछ अंतर्निहित कमियां हैं।
मुख्य बिंदु
v इस योजना के तहत किसानों को अनाज एवं
तिलहन की फसल के लिए दो प्रतिशत तक और उद्यानिकी एवं कपास की फसलों के लिए पांच प्रतिशत
तक प्रीमियम रखने की मंजूरी दी गई है।
v पहले जहां बीमा प्रीमियम 15 प्रतिशत होता
था, अब
उसे घटाकर डेढ़ व दो प्रतिशत कर दिया गया है। यानी अब रबी फसलों के लिए प्रीमियम
डेढ़ प्रतिशत और खरीफ फसल का प्रीमियम दो प्रतिशत होगा। कैपिंग का प्रावधान पूरी
तरह से हटा दिया गया है, जिससे किसानों को पूरा लाभ मिलेगा।
v इससे कम प्रीमियम में ज्यादा जोखिम कवर
होगा और ज्यादा सहायता मिलेगी।
v फसल बीमा को व्यापक बनाते हुए इसके
अंतर्गत खेत में फसलों की बुवाई से खलिहान तक को लाया गया है। पोस्ट हार्वेस्टिंग
में होने वाले नुकसान को भी इसमें शामिल किया गया है।
v बीमा के दावे के लिए अब लंबे समय तक
इंतजार नहीं करना पड़ेगा। प्राकृतिक आपदा के तुरंत बाद 25 प्रतिशत दावा संबंधित
किसानों के बैंक खाते में सीधे पहुंच जाएगा। जबकि बाकी का भुगतान नुकसान के आकलन
के बाद किया जाएगा। इसमें फसलों की कटाई से प्राप्त आंकड़ा भी शामिल होगा। इसके
लिए राजस्व विभाग के कर्मचारियों को स्मार्ट फोन उपलब्ध कराया जाएगा।
v प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान
के साथ-साथ इसमें स्थानीय आपदाओं को भी जोड़ा गया है। ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश
अथवा आंधी या तूफान से स्थानीय स्तर पर होने वाले नुकसान पर भी बीमा का भुगतान
किया जाएगा।
v फसल बीमा को मौजूदा 23 प्रतिशत से
बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया गया है। इसके लिए केंद्र सरकार
को 8800 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे। इतनी ही धनराशि राज्य सरकारों को खर्च करनी
होगी। बटाई पर खेती करने वाले किसानों के लिए राज्यों को नियमों में बदलाव करने को
कहा गया है, ताकि उन्हें भी बटाईदार का प्रमाणपत्र मिल सके।
v ऋण लेने वाले किसानों के साथ इसमें गैर
ऋणी किसानों को शामिल करने पर जोर दिया जाएगा। बीमा योजना को किसानों में लोकप्रिय
बनाने के लिए हर संभव उपाय किए जाएंगे।
v इस योजना का सबसे ज्यादा फायदा पूर्वी
उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड, विदर्भ, मराठवाड़ा और तटीय ओडिशा के क्षेत्रों
को मिलेगा। इस तरह के जोखिम वाले किसानों की खेती पूरी तरह सुरक्षित हो जाएगी।
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