फ्री बेसिक्स क्या है?
इंटरनेट
और टेलीकॉम कंपनियां चाहती हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इंटरनेट सेवाएं
मुहैया कराई जाए ताकि सभी लोग ऑनलाइन आ जाए। सरकार की भी यही कोशिश है कि अगर
पॉलिसी में बदलाव करके अधिक लोग ऑनलाइन हो सकते हैं तो इंटरनेट के जरिए ज्यादा से
ज्यादा लोगों तक फायदा पहुंचाया जा सकता है।
फेसबुक
इस पूरे मामले को और आगे ले गया। रिलायंस कम्युनिकेशंस के साथ मिलकर उसने ग्राहकों
के लिए ऐसी स्कीम पेश की जिसमें फेसबुक पर जाने के लिए लोगों को पैसा नहीं देना
होगा। इस स्कीम को नाम दिया गया 'फ्री बेसिक्स'। फ्री बेसिक्स असल में इंटरनेट ओआरजी (www.internet.org) का बदला हुआ नाम है।
रिलायंस
का इस्तेमाल कर रहे लोग फेसबुक समेत कुछ चुनिंदा वेबसाइट्स बिना किसी डेटा चार्ज के
इस्तेमाल कर सकेंगे (इससे फ्री बेसिक्स जीरो रेटिंग प्लेटफॉर्म बन जाएगा)। फेसबुक के
अनुसार भारत को जीरो रेटिंग की जरूरत है, जिससे लाखों लोगों को मुफ्त इंटरनेट मुहैया कराया जा सके। साथ ही
उनका कहना है कि 'कुछ भी नहीं से कुछ तो बेहतर है।' फेसबुक के अनुसार इसका मकसद लोगों को मुफ्त
इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराना है।
जीरो
रेटिंग को टोल फ्री डेटा या प्रायोजित डेटा भी कहते हैं। इसके तहत ऑपरेटर कुछ
चुनिंदा ऐप्स या सर्विस के लिए आपको डेटा चार्ज नहीं करते। एयरटेल जीरो ऐसी ही स्कीम थी, जिसमें उपभोक्ता को फ्लिपकार्ट और अन्य
पार्टनर साइट्स के इस्तेमाल पर डेटा चार्ज अदा नहीं करना होता था।
फेसबुक
मीडिया प्रचार के जरिए इसे भारत में लागू करने के लिए पैरवी कर रहा है। कुछ का मानना
है कि इस प्रचार पर फेसबुक अब तक करीब 300 करोड़ रुपए खर्च कर चुका है। फेसबुक
के फ्री बेसिक्स के आलोचकों के मुताबिक फेसबुक फ्री बेसिक्स के जरिए नेट
न्यूट्रेलिटी के मूल भाव का उल्लंघन कर रहा है। फ्री बेसिक्स कुछ चुनिंदा सेवाओं
को बढ़ावा देगा। इससे यह आशंका है कि उन सबके साथ भेदभाव होगा, जो उनकी पार्टनर सूची में नहीं होंगे।
नेट
न्यूट्रेलिटी के लिए लोगों की चिंताओं और विरोध के बाद दिसंबर 2015 में फ्री बेसिक्स को ट्राई के निर्देश
के बाद फिलहाल रोक दिया गया है।
नेट न्यूट्रेलिटी क्या है?
सभी
वेबसाइट्स और सर्विस के साथ एक जैसा बर्ताव किया जाना, यही नेट न्यूट्रेलिटी है। इसके तहत सभी आईएसपी किसी का भी पक्ष न लें, न ही किसी खास सर्विस-वेबसाइट्स या ऐप
को ब्लॉक करें और हर तरह के कंटेंट के उपयोग की अनुमति दी जाए। टेलीकॉम अथॉरिटी ऑफ
इंडिया (ट्रार्इ) के नेट न्यूट्रेलिटी नियम के मुताबिक इंटरनेट पर किसी भी प्रकार
की इंटरनेट डाउनलोडिंग में सभी वेबसाइट या ऐप को समान वरीयता प्रदान की जाएगी। ऐसा
कभी नहीं होगा कि इंटरनेट उपभोक्ता को किसी भी कारण से केवल विशेष वेबसाइट या ऐप
ही देखने को मिले।
फेसबुक
और एयरटेल जैसे ऑपरेटर कहते हैं कि वो नेट न्यूट्रेलिटी के पक्षधर हैं। साथ ही
उनका कहना है कि जीरो रेटिंग नेट न्यूट्रेलिटी का उल्लंघन नहीं करता।
भारत में फेसबुक
टीएनएस
नाम की कंपनी के अक्टूबर 2015 में किए गए सर्वे के मुताबिक जून 2015 तक भारत में 30 करोड़ लोग मोबाइल से इंटरनेट इस्तेमाल कर रहे थे। इसमें से 56 फीसद रोज व्हाट्स ऐप और 51 फीसद हर दिन फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में फेसबुक और व्हाट्स ऐप (यह भी फेसबुक के
अधीन है) भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने का एक अहम जरिया है।
फ्री इंटरनेट के फेसबुक मॉडल पर विश्व बैंक की चिंता
विश्व
बैंक ने भारत में फेसबुक समेत वैश्विक स्तर पर कंपनियों द्वारा सीमित पहुंच के साथ
लोगों तक मुफ्त इंटरनेट उपलब्ध कराने के अभियान को लेकर चिंता जतायी है। विश्व बैंक
ने कहा है कि नेट न्यूट्रेलिटी के तहत उपयोगकर्ताओं तक इंटरनेट की आसान पहुंच
सुनिश्चित करनी चाहिए और उनके मौलिक अधिकार तथा आजादी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट ‘वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2016: डिजिटल डिविडेंड्स' में कहा कि इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि
उपयोगकर्ताओं तक इंटरनेट आधारित सामग्री, ऐप्लिकेशन और उनकी रुचि की सेवाओं तक यथासंभव पहुंच हो।
रिपोर्ट
के अनुसार इस मामले में सोच समझकर सावधानीपूर्वक
संतुलन बनाना चाहिए ताकि नेटवर्क परिचालकों को अपने नेटवर्क की क्षमता को मजबूत
बनाने और विस्तार के लिये प्रोत्साहन मिले। विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में भारत
जैसे विभिन्न विकासशील देशों में नेट न्यूट्रेलिटी को लेकर चल रही चर्चा तथा
फेसबुक जैसी कंपनियों की पेशकश का जिक्र किया है।
रिपोर्ट
के अनुसार हाल में ऐसी सेवा तैयार की गयी जिसमें
कुछ मूल सामग्री तक बिना इंटरनेट शुल्क के पुंहचा जा सकता है जैसे कि फेसबुक की फ्री
बेसिक्स या इंटरनेट डॉट ओआरजी। जबकि अन्य के लिये शुल्क देना होगा। यह नेट न्यूट्रेलिटी
के खिलाफ है और बाजार को बिगाडने वाला है।
लोकतंत्र
में हर चीज पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं है। बेहतर विकल्प यह होगा कि इस पर निगरानी
रखी जाए ताकि तकनीकी अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके। साथ ही बाजार में मौजूद दूसरे सेवा प्रदाताओं
को भी इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने की आजादी हो, ताकि प्रतिस्पर्धी माहौल बन सके।
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