यूरोप का शरणार्थी संकट


सीरिया, अफगानिस्तान और एरिट्रिया जैसे कई संकटग्रस्त देशों से लोग अपनी जान बचा कर यूरोप की ओर आ रहे हैं. यूरोप में पहले से ही ग्रीस के आर्थिक संकट का साया था और उस पर शरणार्थियों के बढ़ते बोझ से कई सदस्य देश चिंतित हैं। पिछले दिनों टर्की के समुद्र किनारे सीरिया के तीन साल के बच्चे आयलन कुर्दी का शव औंधे मुंह पड़ा मिला। इस घटना से शरणार्थियों की समस्या अंतर्राष्ट्रीय तौर पर उभर कर सामने आई।
समस्या की शरुआत अचानक नहीं हुई. सीरिया में पिछले पांच साल से गृहयुद्ध चल रहा है. मार्च 2011 में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए. 2011 से अब तक करीब 40 लाख लोग देश छोड़ चुके हैं और 80 लाख लोग देश में ही विस्थापित हुए हैं और दो लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. ये आधिकारिक आंकड़े हैं. असल संख्या इससे काफी ज्यादा हो सकती है.
लेबनान के हालात पहले से बदतर हैं। जॉर्डन, बुल्गारिया और इराक की स्थति भी खराब है। अफगानिस्तान और अफ्रीकी देशों में भी भयंकर अशांति है। कई देशों में चल रहे गृहयुद्ध, भुखमरी से बचने के लिए लोग पड़ोसी यूरोपीय देशों में शरण लेने के लिए जा रहे हैं। इस साल 15 अगस्त तक करीब 4.5 लाख लोग यूरोपीय देशों में दाखिल हो चुके हैं।
यूरोप दूसरे विश्व युद्ध के बाद अब तक के सबसे बड़े शरणार्थी संकट का सामना कर रहा है. साल 2015 की केवल दूसरी तिमाही में ही 2.1 लाख से अधिक लोगों ने यूरोपीय देशों में शरण के लिए आवेदन किया है. यह संख्या ठीक एक साल पहले के मुकाबले 85 फीसदी बढ़ी है.
संयुक्त राष्ट्र के जेनेवा कन्वेंशन में 'शरणार्थी' को परिभाषित किया गया है. यूरोपीय संघ के सभी 28 देश इस संधि के तहत शरणार्थियों की मदद करने के लिए बाध्य हैं. यही कारण है कि लोग यूरोप में शरण की आस ले कर आ रहे हैं. संकटग्रस्त देशों से यूरोप का रास्ता छोटा नहीं है. अधिकतर लोग पहले तुर्की, वहां से बुल्गारिया, फिर सर्बिया, हंगरी और फिर ऑस्ट्रिया होते हुए जर्मनी पहुंचते हैं. इसके आगे डेनमार्क और फिर स्वीडन भी जाते हैं. कई लोग समुद्र का रास्ता ले कर तुर्की से ग्रीस और फिर इटली के जरिए यूरोप की मुख्य भूमि में प्रवेश करते हैं.
यूरोपीय आयोग ने समस्या का हल तलाशने की घोषणा करते हुए शरणार्थी कोटा तय किया है। 120,000 शरण चाहने वालों को यूरोपीय संघ के देशों के बीच बांटा जाएगा। इसके लिए कोटा तय किया गया है जिसे मानने के लिए देश बाध्य होंगे। शरणार्थियों की पहली पसंद जर्मनी ने इस कोटा व्यवस्था का समर्थन किया है। लेकिन, यूरोपीय संघ के कई देश इसके विरोध में हैं।
हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने चेतावनी दी है कि इन सभी को यूरोप में बसाने से यूरोप के ईसाई चरित्र को खतरा है। अभी यूरोप में मुस्लिम की जनसंख्या काफी कम है। ईसाई देशों पर हुए अब तक के आतंकी हमले से भी यूरोप डरा हुआ है। यूरोप में होने वाली आतंकवादी घटनाओं को उन मुसलमानों ने अंजाम दिया था जिनके दादा या परदादा एक शरणार्थी के रूप में यूरोप में जा बसे थे।

यूरोपीय संघ के 28 देशों के लिए एकीकृत शरणार्थी नीति अपनाना मुश्किल है। सबकी अपनी न्यायपालिका है और अलग अलग पुलिस बल हैं। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। कई यूरोपीय देशों में बेरोजगारी है और वहां विदेशी मजदूरों को पसंद नहीं किया जाता है। शरणार्थियों को किस तरह आपस में बांटा जाए, इस पर ये देश एकमत नहीं हैं।

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