छत्तीसगढ़
में राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की ओर से प्रकाशित दसवीं के बच्चों
के लिए अनिवार्य सामाजिक विज्ञान की किताब में 'आर्थिक समस्याएं एवं चुनौतियां' शीर्षक से एक पाठ है। इस पाठ में देश में बढ़ती बेरोजगारी के नौ कारण
गिनाए गए हैं। इसमें एक कारण महिलाओं का नौकरी में होना बताया गया है। इसे विस्तार
से समझाते हुए किताब में आगे लिखा गया है कि आजादी के पहले काफी कम महिलाएं नौकरी
करती थीं लेकिन अब अधिक महिलाओं के नौकरी करने के कारण पुरुषों में बेरोजगारी का
अनुपात बढ़ा है।
बेरोजगारी के कारण
- जनसंख्या वृद्धि
- लघु एवं कुटीर उद्योगों में ह्स
- श्रम की गतिशीलता का अभाव
- दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति
- त्रुटिपूर्ण नियोजन
- महिलाओं द्वारा नौकरी
- धीमा औद्योगिकीकरण
- अशिक्षित एवं अकुशल श्रम
- प्रशिक्षण सुविधाओं का अभाव
कांसाबेल
की सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय की शिक्षिका 24 साल की सौम्या गर्ग ने 14-15 साल
के इन बच्चों को ऐसी शिक्षा देना ठीक नहीं समझा। गर्ग ने इस मामले की शिकायत राज्य
महिला आयोग से की और नए पाठ्यक्रम में इसे सुधारे जाने की मांग की। उनकी शिकायत का
आधार यह था कि यह भारत के हर नागरिक को संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार
का उल्लंघन है। ऐसी शिक्षा देना ना केवल महिलाओं का अपमान है बल्कि समाज में
पितृसत्ता को बढ़ावा देने की कोशिश भी।
यह
किताब साल 2006-07 में प्रकाशित हुई थी और तब से उसी अंक को बार बार पुन:प्रकाशित
किया जाता रहा है। शिकायत सामने आने पर राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. रमण सिंह ने
किताब के उस अध्याय को वापस लिए जाने के आदेश दे दिए हैं।
जून
2015 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से प्रकाशित हुए एक वर्किंग पेपर में बताया गया है
कि घरेलू महिलाओं की तुलना में नौकरीपेशा महिलाओं की बेटियों के नौकरी में रहने, महत्वपूर्ण पेशेवर जिम्मेदारियां उठाने
और अधिक कमाने की संभावना होती है। रिसर्चरों ने पाया कि कामकाजी महिलाओं के बेटे
भी परिवार के सदस्यों के साथ ज्यादा वक्त बिताने और घर के कामकाज में अधिक मदद
करने वाले होते हैं। ऐसे में अधिक से अधिक महिलाओं के कामकाजी होने से समाज को
फायदा है या नुकसान, यह
स्पष्ट है।
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