प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में 9 सिंतबर 2015 को
सम्पन्न मंत्रिमंडल की बैठक में 21वें विधि आयोग के गठन को मंजूरी दी गई। 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 1 सितम्बर 2015 से
31 अगस्त 2018 तक, यानी तीन वर्षों का होगा। 21वें विधि आयोग में एक पूर्णकालिक
अध्यक्ष सहित चार पूर्णकालिक सदस्य होंगे। अंशकालिक
सदस्य की संख्या 5 से अधिक नहीं होगी।
कार्य
केंद्र सरकार द्वारा उल्लिखित या स्वमेव आधार पर विधि संबंधी
अनुसंधान करेगा।
भारत में मौजूद कानूनों की समीक्षा करेगा ताकि उनमें सुधार किया जा सके और नए कानून लागू
किए जा सकें।
कानूनी प्रक्रियाओं में विलंब को दूर करने, मुकदमों को जल्द निपटाने और मुकदमे के
खर्चों में कमी इत्यादि संबंधी न्याय प्रणाली में सुधारों के लिए अध्ययन और
अनुसंधान करेगा।
अप्रासंगिक कानूनों की पहचान करना और अनावश्यक कानूनों को रद्द करने
की सिफारिश करना।
नीति निर्देशक तत्वों के क्रियान्वनयन के लिए आवश्यक नए कानूनों को
लागू करने के संबंध में सुझाव देना।
विधि आयोग
स्वतंत्र
भारत का प्रथम विधि आयोग वर्ष 1955 में गठित हुआ था और भारत के तत्कालीन
महान्यायवादी एम.सी. सीतलवाड़ इसके अध्यक्ष थे। वर्ष 1955
से 1 सितम्बर 2012 तक 20 विधि आयोग गठित हो चुके हैं। विधि आयोग का कार्यकाल 3 वर्ष
का होता है। विधि आयोग एक गैर सांविधिक निकाय है जो केन्द्रीय विधि एवं न्याय
मंत्रालय के करीबी समन्वय में तथा उसके सामान्य निर्देशों के अंतर्गत कार्य करता
है। विधि आयोगों के विचारार्थ विषय भिन्न-भिन्न रहे हैं। 20वें विधि आयोग के अध्यक्ष दिल्ली उच्च न्यायालय
के पूर्व न्यायधीश न्यायमूर्ति अजीत प्रकाश शाह थे।
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