बिहार में सवर्ण आयोग की सिफारिशों पर पहल प्रारंभ

राज्य सरकार ने 31 जनवरी, 2011 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश डीके त्रिवेदी की अध्यक्षता में राज्य की उच्च जातियों में शैक्षणिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के अध्ययन के लिए एक आयोग का गठन किया था। इस आयोग के उपाध्यक्ष कृष्णा प्रसाद सिंह थे और सदस्यों में नरेंद्र प्रसाद सिंह, फरहत अब्बास व संजय प्रकाश शामिल थे। ज्ञात हो कि ऊंची जाति के गरीबों की पहचान के लिए आयोग बनाने और उसकी अनुशंसाओं को अमल में लानेवाला बिहार एकमात्र राज्य है।
आयोग को निर्दिष्ट कार्य
·         ऊंची जातियों में शैक्षणिक व आर्थिक रूप से कमजोर समूह की पहचान करना।
·         ऊंची जातियों में ऐसे वर्ग की पहचान करना और उनका आकलन करना जिनके पास दूसरे वर्ग की तुलना में अर्थोपार्जन के सीमित स्रोत हैं।
·         उनके पिछड़ेपन के कारणों की तलाश करना और उनके व्यापक हित में सुझाव देना।
आयोग की रिपोर्ट
§  आयोग ने हिंदुओं में ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ जातियों तथा मुसलमानों की शेख, सैयद और पठान की शैक्षणिक व आर्थिक हालातों का अध्ययन किया है।
§  राज्य के 38 में से 20 जिलों में ऊंची जातियों की शैक्षणिक व आर्थिक स्थितियों का अध्ययन किया गया है।
§  आयोग के लिए रिसर्च और रिपोर्ट बनाने का काम आद्री नामक एक ग़ैरसरकारी संस्थान द्वारा किया गया है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष

v  ऐतिहासिक कारणों से ऊंची जाति के लोगों के बीच जो प्रतिकूल हालात हैं, उस पर उचित ध्यान नहीं दिया गया है। प्रतिकूल स्थितियों में रह रहे लोगों पर कल्याणकारी योजनाओं के ज़रिये विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।
v  सवर्ण आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, अगड़ी जातियों की बड़ी आबादी को रोजगार नहीं मिल पा रहा है और उनकी कमाई के रास्ते कम होते जा रहे हैं। हिंदू और मुसलमानों की ऊंची जातियों में काम करने वाली कुल आबादी के एक चौथाई के पास रोजगार नहीं है। रोजगार के मौके पैदा नहीं होने की वजह से ऊंची जातियों के कई परिवारों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। 
v  ऊंची जातियों में काम करने वाली आबादी (रोजगार व बेरोजगारों को मिलाकर) में हिंदुओं का प्रतिशत 46.6 और मुसलमानों का प्रतिशत 43 है। यह आंकड़ा वर्ष 2011 की जनगणना में काम करने वाली कुल आबादी 44.9 फीसदी के करीब है।
v  शहरी और ग्रामीण इलाकों में उच्च जातियों के बीच बेरोजगारी का स्तर लगभग समान है। उच्च जाति के हिंदुओं में सर्वाधिक बेरोजगारी कायस्थों में (14.1 प्रतिशत) और मुसलमानों में सैयदों में (11.3 प्रतिशत) है।
v  2011 की जनगणना के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में कामकाजी महिलाओं की आबादी 20.2 प्रतिशत है, जबकि हिंदू और मुसलमानों की ऊंची जाति की महिलाओं की काम करने वाली आबादी महज 2.6 प्रतिशत है। शहरी इलाकों में ऊंची जाति की महिलाओं में काम करने वाली आबादी का प्रतिशत बहुत कम है। यह हिंदुओं में 7.6 प्रतिशत और मुसलमानों में 7.4 प्रतिशत है।
v  हिंदुओं में ऊंची जाति के लोगों में स्वरोजगार का बड़ा जरिया खेती है। इसका मूल कारण उनके लिए उच्च शिक्षा का अभाव और इस कारण नौकरी न मिल पाना है। हिंदुओं की 24.7 प्रतिशत और मुसलमानों की 15.7 प्रतिशत आबादी स्वरोजगार करती है।
v  राज्य सवर्ण आयोग की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में ऊंची जातियों के पास ज़मीन तो है, लेकिन वह इतनी ज़्यादा नहीं है कि सभी को काम मिल सके। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले ऊंची जाति के परिवारों के पास औसतन कृषि योग्य भूमि का रकबा 1.91 एकड़ (हिंदू) और 0.45 एकड़ (मुस्लिम) है।ऊंची जाति वाले हिंदुओं में से मात्र 8.6 प्रतिशत के पास 5 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन है, जबकि ऊंची जाति के मुसलमानों में से 1.1 प्रतिशत लोगों के पास 5 एकड़ या इससे अधिक ज़मीन है
v  ग्रामीण इलाकों में हिंदुओं की ऊंची जातियों में 34 प्रतिशत के पास नियमित आमदनी नहीं है, जबकि मुसलमानों में यह 58.3 प्रतिशत है।  
v  बिहार की ऊंची जातियों में शिक्षा की सच्चाई यह है कि उनके बीच साक्षरता होने के बावजूद उनके शिक्षा का स्तर निम्न है। ग्रामीण बिहार में गरीबी के चलते ऊंची जाति के 49 प्रतिशत हिंदु और 61.8 प्रतिशत मुसलमान बच्चे स्कूल या कॉलेज नहीं जा पाते। शहरों में स्कूल या कॉलेज नहीं जाने वालों का प्रतिशत 55.6 है।
v  ऊंची जातियों में भी इलाज के लिए दूसरी पिछड़ी जातियों की तरह झाड़फूंक का चलन बना हुआ है। ग्रामीण इलाके में हिंदुओं की ऊंची जातियों के 20.2 प्रतिशत घरों में और मुसलमानों के 35.0 प्रतिशत घरों में झाड़फूंक पर भरोसा किया जाता है। 
 आयोग की सिफ़ारिशें
Ø  सालाना डेढ़ लाख रुपये से कम आमदनी वाले सवर्ण जाति के परिवार को गरीब माना जाए।
Ø  कक्षा एक से दस तक के छात्र जिनकी पारिवारिक आय डेढ़ लाख या उससे कम हो वैसे उंची जाति के छात्रों को भी छात्रवृत्ति दी जाए।
Ø  लोक कल्याणकारी योजनाओं में उच्च जाति के गरीबों का भी ख्याल रखा जाए।
Ø  सवर्ण आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सरकार द्वारा समाज के लिए चलाये जाने वाले कल्याणकारी कार्यक्रमों को मोटे तौर पर पांच तरह की जरूरतों को पूरा करने वाले कार्यक्रमों (शिक्षा, आवास, शौचालय सुविधा, खेती और सामाजिक कल्याण) के रूप में रेखांकित किया है। छात्रवृत्ति योजनाओं सहित गरीबों के लिए घर, शौचालय सुविधा और कृषि संबंधी योजनाओं को पुनर्भाषित करते हुए उच्च जाति के गरीबों को भी शामिल किया जाए।
Ø  आयोग ने कहा है कि इन अनुशंसाओं को लागू करने ये न केवल सवर्णों के निरंतर बिगड़ते हालात सुधरेंगे, बल्कि भारतीय समाज में न्याय का संतुलन सुस्थिर होगा।
सिफारिशों पर पहल
ü  आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्य की उच्च जातियों से आने वाले ऐसे छात्रों जिनकी पारिवारिक आय एक लाख पचास हजार रुपये या उससे कम हो और जो बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा आयोजित मैट्रिक परीक्षा में प्रथम श्रेणी में पास हुए हों, उन्हें मुख्यमंत्री विद्यार्थी प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत दस हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी।
ü  उच्च जातियों के कक्षा एक से कक्षा दस तक के छात्र जिनकी पारिवारिक आय एक लाख पचास हजार रुपये या उससे कम हो उन्हें छात्रवृत्ति दी जाएगी।
ü  आयोग द्वारा उच्च जातियों के कमजोर वर्गों के हित में की गयी अन्य अनुशंसाओं पर अमल करने के लिए मुख्य सचिव के अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति बनायी गई है। यह समिति तीन महीने में अपनी रिपोर्ट देगी।

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