त्रिपुरा से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट की समाप्ति

18 साल बाद त्रिपुरा से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम या अफस्पा कानून (The Armed Forces Special Powers Act, AFSPA) को हटा लिया गया है। उग्रवाद प्रभावित राज्य में यह विवादित कानून 16 फरवरी 1997 से लागू था। उस दौरान बांग्लादेश सीमा के पास त्रिपुरा में आतंकवाद अपने चरम पर था। त्रिपुरा के अलावा जम्‍मू कश्‍मीर, असम, नागालैंड, अरूणाचल प्रदेश के कुछ जिलों और मणिपुर (इंफाल नगरपालिका परिषद क्षेत्र को छोड़कर) में अफस्पा कानून अभी भी लागू है।
अफस्पा कानून

v  1942 के जन उभार को कुचलने के लिए अंग्रेज़ों ने सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अध्‍यादेश – 1942′ जारी किया था और फिर इसका जमकर इस्तेमाल भी किया गया। इसी कानून के अनुरुर 1958 में भारतीय संसद में एक विधेयक तत्कालीन गृहमन्त्री गोविन्द वल्लभ पन्त द्वारा प्रस्तुत किया गया, जो पारित होने के बाद सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) कानून – 1958′ बन गया।
v  सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्रवाई में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया। कश्‍मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में बढोतरी होने के बाद जुलाई 1990 में यह कानून जम्‍मू कश्‍मीर में भी लागू किया गया। हालांकि राज्‍य के लेह व लद्दाख इलाके इस कानून के दायरे से बाहर रखे गए।
v  अफस्पा कानून कहीं भी तब लगाया जाता है जब वहां की सरकार उस क्षेत्र को अशांत घोषित कर देती है। इस कानून के लागू होने के बाद ही वहां सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं, जिन्हें किसी भी कार्रवाई के लिए सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
v  इसके अनुसार, सेना के एक नॉन-कमीशण्ड ऑफिसर को भी यह अधिकार होता है कि वह कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिएमहज़ सन्देह के आधार पर किसी को गोली मार देने का निर्देश दे सकता है।
v  अफ्सपा कानून के जरिए सेना को असीमित अधिकार प्रदान किए गए हैं। अफस्पा कानून नागरिक शासन की सहायताके नाम पर सशस्त्र बलों को बिना किसी वारण्ट के तलाशी, पूछताछ, गिरफ्तारी और गोली मार देने का अधिकार एवं जवाबी कार्रवाई के ऑपरेशनों में संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेना या उसे नष्ट कर देने का व्यापक अधिकार प्रदान करता है।
v  इस कानून के अनुच्छेद-5 के अनुसार, सेना यदि अशान्त क्षेत्र में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो उसे यथाशीघ्रनज़दीक के पुलिस स्टेशन को सौंप देगी। लेकिन इस यथाशीघ्रको अस्पष्ट और अपरिभाषित रहने दिया गया है।
v  कानून के अनुच्छेद-6 के अनुसार, अफ्सपा के अन्तर्गत काम कर रही सेना के किसी भी व्यक्ति पर केन्द्र सरकार की अनुमति के बग़ैर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती। यानी वह कानून किसी भी प्रभावित व्यक्ति को कानूनी राहत का कोई विकल्प नहीं देता।
अफ्सपा कानून का विरोध
Ø  मणिपुर से इस कानून को हटान के लिए समाजसेवी इरोम शर्मिला पिछले 15 साल से अनशन पर हैं। वहीं, जम्मू-कश्मीर में भी कई राजनीतिक पार्टियां लगातार विरोध करती रही हैं।
Ø  इस क़ानून का सबसे बड़ा मुद्दा है सशस्त्र बलों को छूट प्रदान करने का प्रावधान। इस क़ानून के ज़रिए सेना और सुरक्षा बलों को बहुत से विशेषाधिकार मिले हैं और ये आरोप लगता रहा है कि इन क़ानूनों की आड़ में सुरक्षा बल आम लोगों पर ज़्यादतियाँ करके भी बच निकलते हैं। जिन जगहों पर ये का़नून लागू होता है वहां पर ख़र्च की कोई सीमा तय नहीं होती, कोई हिसाब-किताब नहीं होता।
Ø  1991 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कमेटी के सदस्यों ने जब अफ्सपा कानून की वैधता पर सवाल उठाये तो भारत के महाधिवक्ता का एकमात्र तर्क यह था कि पूर्वोत्तर के राज्यों को अलग होने से रोकने लिए यह कानून लागू करना ज़रूरी था, क्योंकि भारतीय संविधान की धारा-355 राज्यों को आन्तरिक अशान्ति से बचाने की ज़िम्मेदारी केन्द्र सरकार को सौंपती है।
Ø  अफ्सपा कानून भारतीय संविधान की धारा-21 का खुला उल्लंघन है जो बताता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीने के अधिकार या व्यक्तिगत आज़ादी से वंचित नहीं किया जा सकता और ऐसा केवल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही किया जा सकता है।
Ø  यह कानून गिरफ्तारी और हिरासत के विरुद्ध नागरिक को कानूनी सुरक्षा का अधिकार देने वाली संविधान की धारा-22 का भी खुला उल्लंघन करता है।

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