सरकारी विज्ञापनों में नहीं लगेगी नेताओं की तस्वीर



उच्चतम न्यायालय ने सरकारी विज्ञापनों के नियमन से संबंधित दिशानिर्देश को जारी करते हुए 13 अप्रैल 2015 को कहा कि इन विज्ञापनों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश की ही तस्वीरें हो सकती हैं। उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि इन तीन  संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तित्वों से पहले उनकी मंजूरी लेनी होगी कि विज्ञापन में उनकी तस्वीर का इस्तेमाल किया जाये या नहीं। उच्चतम न्यायालय द्वारा यह दिशानिर्देश माधव मेनन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति की सिफारिशों के आधार पर जारी किया गया है।

क्या है मामला
गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन द्वारा दाखिल एक याचिका में कहा गया था कि सरकार चला रही पार्टियां सरकारी विज्ञापनों के ज़रिये राजनीतिक लाभ लेती हैं। इसलिए विज्ञापनों की सामग्री पर नियंत्रण के लिए व्यवस्था बनाई जानी चाहिए।

केंद्र सरकार का दृष्टिकोण
17 फरवरी, 2015 को सरकार ने अपनी एक याचिका में सरकारी विज्ञापनों के नियमन के लिए दिशानिर्देशों के निर्धारण का विरोध करते हुए कहा था कि यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता क्योंकि एक निर्वाचित सरकार संसद के प्रति जवाबदेह है। साथ ही सरकार का कहना था कि नीतियों एवं अन्य मामलों के बारे में अधिकतर इन विज्ञापनों के जरिए ही संवाद करती है।
न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार की इस याचिका को खारिज कर दिया कि न्यायपालिका को नीतिगत फैसलों के क्षेत्र में दखल नहीं देना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि कोई नीति या कानून मौजूद न होने की स्थिति में अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं।

माधव मेनन समिति
शीर्ष अदालत ने 24 अप्रैल, 2014 को शिक्षाविद प्रोफेसर एन. आर. माधव मेनन की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था और राजनीतिक लाभ लेने के लिए सरकारों और अधिकारियों द्वारा अखबारों एवं टीवी में विज्ञापन देकर जनता के पैसे का दुरुपयोग किए जाने पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तय करने का फैसला किया था। इस समिति के अन्य दो सदस्य लोकसभा के पूर्व सचिव टी के विश्वनाथन और सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार थे। समिति ने सिफारिश दी थी कि एक ही विज्ञापन निकाला जाना चाहिए, जो कि किसी महत्वपूर्ण शख्सियत की जयंती या पुण्यतिथि जैसे मौकों पर आए। अच्छा होगा कि यह विज्ञापन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा निकाला जाए।

न्यायालय के दिशानिर्देश

  • न्यायालय ने सरकारी विज्ञापनों के खर्च और सामग्री के नियमन के संदर्भ में महादेव मैनन समिति की अधिकांश सिफारिशों को स्वीकार करते हुए कहा कि सरकारी विज्ञापनों में सिर्फ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश की ही तस्वीरें हो सकती हैं। हालांकि, समिति की सिफारिश में कहा गया था कि सरकारी विज्ञापनों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत किसी पदाधिकारी की तस्वीर नहीं होनी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि सरकारी विज्ञापनों में नेताओं की फोटो का इस्तेमाल करना सही नहीं है।
  • सरकारी विज्ञापनों में मुख्‍यमंत्री, मंत्री, राज्यपाल समेत किसी नेता की तस्वीर नहीं लगायी जा सकती है।
  • सरकारी विज्ञापन में न तो पार्टी का नाम, न पार्टी का सिंबल या लोगो, न पार्टी का झंडा और न ही पार्टी के किसी नेता का फोटो होना चाहिए।
  • यह फैसला उन सभी विज्ञापनों पर लागू होगा जो केंद्र एवं राज्य सरकारें विभिन्न योजनाओं के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए जारी करती हैं।
  • न्यायालय ने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि वह सरकारी विज्ञापन के मुद्दे के नियमन के लिए तीन सदस्यीय लोकपाल का गठन करे, जो विज्ञापनों पर नजर रखेगी। न्यायालय ने ये भी कहा है कि अगर विज्ञापन सही है तो चुनाव से पहले भी इसका इस्तेमाल हो सकता है।
  • न्यायालय ने मीडिया घरानों को सरकार द्वारा दिए जा रहे विज्ञापनों के विशेष ऑडिट के प्रावधान को मंजूरी नहीं दी, जबकि इसकी अनुशंसा समिति द्वारा की गई थी।

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