आईटी एक्ट की धारा 66 ए और अभिव्यक्ति की आजादी



उच्च्तम न्यायालय ने 24 अप्रैल,2015 को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सूचना तकनीक कानून की धारा 66 ए (IT ACT Section 66 A) को खत्म करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि सूचना तकनीक कानून की यह धारा संविधान के अनुच्छेद 19(1) का उल्लंघन है, जो भारत के हर नागरिक को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसके अनुसार धारा 66 ए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार का हनन है। इस फैसले के बाद अब सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के कारण आईटी एक्ट की धारा 66 ए के तहत किसी की गिरफ्तारी नहीं की जा सकती। 

न्यायालय का दृष्टिकोण
न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन की खंडपीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुनाया, जिसमें साइबर कानून की कुछ धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। सोच और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आधारभूत बताते हुए खंडपीठ ने कहा कि  आईटी एक्ट की धारा 66 ए से लोगों की जानकारी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार स्पष्ट रुप से प्रभावित होता है। खंडपीठ ने 66 ए को अस्पष्ट बताते हुए कहा कि किसी एक व्यक्ति के लिए जो बात अपमानजनक हो सकती है, वह दूसरे के लिए नहीं भी हो सकती है। धारा 66 ए को असंवैधानिक ठहराते हुए खंडपीठ ने कहा कि प्रावधान में इस्तेमाल 'चिढ़ाने वाला', 'असहज करने वाला' और 'बेहद अपमानजनक' जैसे शब्द अस्पष्ट हैं क्योंकि कानून लागू करने वाली एजेंसी और अपराधी के लिए अपराध के तत्वों को जानना कठिन है।

जनहित याचिका
इस मुद्दे पर पहली जनहित याचिका साल 2012 में विधि छात्रा श्रेया सिंघल ने दायर की थी। यह जनहित याचिका दो लड़कियों शाहीन ढाडा और रीनू श्रीनिवासन को महाराष्ट्र में ठाणे जिले के पालघर में गिरफ्तार करने के बाद दायर की गई थी। उनमें से एक ने शिवसेना नेता बाल ठाकरे के निधन के बाद मुंबई में बंद के खिलाफ टिप्पणी पोस्ट की थी और दूसरी लड़की ने उसे लाइक किया था। 
जनहित याचिकाओं में आईटी एक्ट की धारा 66 को असंवैधानिक बताते हुए निरस्त करने की मांग की गई थी। याचिकाओं में इस कानून को अभिव्यक्ति की आज़ादी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताया गया था। याचिकाओं में ये मांग भी की गई थी कि अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़े किसी भी मामले में मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना कोई गिरफ़्तारी नहीं होनी चाहिए। हाल के महीनों में पुलिस ने फेसबुक और ट्विटर पर आपत्तिजनकपोस्ट डालने के लिए कई लोगों को गिरफ्तार किया है।

सरकार का अभिमत
सरकार का मानना था कि इस कानून के दुरूपयोग को रोकने की कोशिश होनी चाहिए। इसे पूरी तरह निरस्त कर देना सही नहीं होगा। सरकार के मुताबिक इंटरनेट की दुनिया में तमाम ऐसे तत्व मौजूद हैं जो समाज के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। ऐसे में पुलिस को शरारती तत्वों की गिरफ़्तारी का अधिकार होना चाहिए।
 केंद्र सरकार इस कानून के दुरूपयोग को रोकने के लिए पहले ही सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस एडवाइजरी के आधार पर अंतरिम आदेश दिया था कि आईटी एक्ट की धारा 66A के तहत कोई भी गिरफ़्तारी या कार्रवाई एसपी रैंक से नीचे के अधिकारी की मंज़ूरी के बिना न हो।

आईटी एक्ट की धारा 66
v  आईटी एक्ट 2000 में बना। लेकिन इसमें 2008 में बदलाव हुए। इसके बाद धारा 66-ए विवादों में आ गई। इस धारा के तहत पुलिस को ये अधिकार था कि वो इंटरनेट पर लिखी गई बात के आधार पर किसी को गिरफ्तार कर सकती है। अनुच्छेद 66A के तहत दूसरे को आपत्तिजनक लगने वाली कोई भी जानकारी कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन से भेजना दंडनीय अपराध था।
v  इस धारा के तहत दोष साबित होने पर तीन साल की सजा या जुर्माना या दोनों का प्रावधान था।
v  यह धारा इन मामलों में लग सकती है –
·          कोई भी सूचना जो अपमानजनक या धमकी भरी हो।
·          ऐसी जानकारी जो कंप्यूटर या उससे जुड़े संचार माध्यमों का इस्तेमाल कर भेजी गई हो और जिसका मकसद किसी को आहत करना, असहज करना, अपमानित करना, नुकसान पहुंचाना, धमकाना या नफरत फैलाना हो।
·          कोई मेल या मैसेज जो गुमराह करता हो, असहज करता हो या आहत करता हो।

धारा 66ए के  हटाए जाने का प्रभाव
v  धारा 66ए हटाए जाने से बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार को बल मिलेगा। सोशल मीडिया को पुलिस के अनावश्यक भय से मुक्ति मिलेगी। हालांकि, आईटी ऐक्ट की अन्य धाराओं 69 ए और धारा 79 को निरस्त नहीं किया गया है और ये कुछ पाबंदियों के साथ लागू रह सकती हैं। धारा 69 ए किसी कंप्यूटर संसाधन के जरिए किसी सूचना तक सार्वजनिक पहुंच को रोकने के लिए निर्देश जारी करने की शक्ति देती है और धारा 79 में कुछ मामलों में मध्यवर्ती की जवाबदेही से छूट का प्रावधान करती है। 
v  इस धारा के खत्म होने से फेसबुक, ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर की जाने वाली किसी भी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए पुलिस आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर पाएगी, जबकि धारा 66A में तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान था। हालांकि आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है, लेकिन इस धारा के तहत अब मामला नहीं चलाया जा सकेगा।
v  अब किसी के पोस्ट पर किसी को आपत्ति होगी तो न्यायायलय फैसला करेगा कि ये गलत है या सही।
v  यह भी संभव है कि राष्ट्र और सामाजिक विरोधी तत्व इसकी आड़ में कुछ भी आपत्तिजनक बातें लिखकर डाल सकते हैं। 
v  अलगाववादी संगठन द्वारा कुछ ऐसी सामग्री पोस्ट किया जा सकता है जो उनके विचार में सही हो लेकिन देश की एकता और अखंडता के लिए नुकसानदेह हो। 
v  अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इंटरनेट पर साझा होने वाली अपमानजनक सामग्री को रोकने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को भिन्न कानूनों का सहारा लेना पङेगा। 


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