गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम,2015



गुजरात सरकार द्वारा 12 साल पुराना विवादित गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2015 (Gujarat Control of Terrorism and Organized Crime (GCTOC) Bill, 201531 मार्च,2015 को पारित किया गया। इस बिल को पूर्व में दो बार 2004 और 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति क्रमश: एपीजे अब्दुल कलाम और प्रतिभा पाटिल राज्य सरकार को वापस कर चुके हैं। तीसरी बार पास हुआ बिल राष्ट्रपति के पास लंबित है। आतंकवाद एवं संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम को पहली बार वर्ष 2003 में गुजरात संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (The Gujarat Control of Organised Crime Act ,GUJCOCA) के नाम से लाया गया था। नया बिल इसी को थोडा-बहुत संशोधित कर लाया गया है। यह बिल महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) की तरह का है।

नए कानून का उद्देश्य
·          संगठित अपराध के खतरे से समाज को बचाने के लिए नए कानून का प्रावधान किया गया है।
·          आर्थिक उन्नति के साथ गुजरात को आतंकवाद और आर्थिक अपराधियों के हमलों का सामना करना पड़ सकता है।
·          गुजरात की 1600 किमी सीमा समुद्री है,जिसमें 500 किमी लंबी सीमा  पाकिस्तान से लगी है।
·          पिछले एक दशक में कई आतंकी हमलों का सामना करना पङा है।  इन हमलों में अक्षरधाम मंदिर, ट्रॉमा सेंटर और रघुनाथ मंदिर शामिल है।
प्रावधान
v  आरोपी को 30 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है, जबकि वर्तमान में यही सीमा 15 दिनों की है।
v  पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (सरकारी वकील) सिफारिश पर पुलिस चार्जशीट करने के लिए 180  दिनों का समय ले सकती है। यह भी वर्तमान समय सीमा से दोगुनी है।
v  भारत में सामान्य बिलों में पुलिस के सामने अपराध क़ुबूल कर लेना इंसाफ़ के लिहाज़ से स्वीकार्य नहीं होता है। गुजरात सरकार ने नए आतंकवाद निरोधक बिल में इस प्रावधान को रखा है कि पुलिस (एसपी स्तर के अधिकारी) के सामने आरोप क़ुबूल करना अदालत में स्वीकार किया जाएगा। टाडा, पोटा, मकोका जैसे अपवादों को छोड़ दें तो आम बिल इसकी इजाज़त नहीं देते।
v  पुलिस को फोन टैप करने का अधिकार। फोन टैपिंग, ईमेल, तार जैसे इलेक्ट्रॉनिक इंटरसेप्शन को अदालत सबूत के तौर पर स्वीकार करेगी।
v  आरोपी को अग्रिम जमानत/स्थायी जमानत नहीं मिल सकेगी। 
v  नए कानून में वैश्यावृत्ति,मल्टी लेवल मार्केटिंग पोंजी स्कीम को आतंकवादके समकक्ष माना गया है। साइबर क्राइम और कॉन्ट्रैक्ट किलिंग, मानव तस्करी एवं जुए के मामले भी इसी सूची में हैं।
v  इन अपराधों के लिए विशेष अदालत के गठन का प्रावधान किया गया है। गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सहमति से राज्य सरकार इसका गठन कर सकती है।

मकोका
·          महाराष्ट्र सरकार ने 1999 में मकोका (Maharashtra Control of Organised Crime Act, 1999, MCOCA) बनाया था। इसका मुख्य मकसद संगठित और अंडरवर्ल्ड अपराध को खत्म करना था।
·          2002 में दिल्ली सरकार ने भी इसे लागू कर दिया। फिलहाल महाराष्ट्र और दिल्ली में यह कानून लागू है।
·          इसके तहत संगठित अपराध जैसे अंडरवर्ल्ड से जुड़े अपराधी, जबरन वसूली, फिरौती के लिए अपहरण, हत्या या हत्या की कोशिश, धमकी, उगाही सहित ऐसा कोई भी गैरकानूनी काम जिससे बड़े पैमाने पर पैसे बनाए जाते हैं, मामले शामिल हैं।
·          मकोका लगने के बाद आरोपियों को आसानी से जमानत नहीं मिलती है।
·          किसी के खिलाफ मकोका लगाने से पहले पुलिस को एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस से मंजूरी लेनी होती है।
·          इसमें किसी आरोपी के खिलाफ तभी मुकदमा दर्ज होगा, जब 10 साल के दौरान वह कम से कम दो संगठित अपराधों में शामिल रहा हो। संबंधित संगठित अपराध में कम से कम दो लोग शामिल होने चाहिए। इसके अलावा आरोपी के खिलाफ एफआईआर के बाद चार्जशीट दाखिल की गई हो।
·          यदि पुलिस 180 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल नहीं करती, तो आरोपी को जमानत मिल सकती है।
·          मकोका के तहत पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए 180 दिन का वक्त मिल जाता है, जबकि आईपीसी के प्रावधानों के तहत यह समय सीमा सिर्फ 60 से 90 दिन है।
·          मकोका के तहत आरोपी की पुलिस रिमांड 30 दिन तक हो सकती है, जबकि आईपीसी के तहत यह अधिकतम 15 दिन होती है। 
·          इस कानून के तहत अधिकतम सजा फांसी है, वहीं न्यूनतम पांच साल जेल का प्रावधान है।
·          टाडा और पोटा की तरह ही मकोका में भी जमानत का प्रावधान नहीं है।

टाडा व पोटा
v  आतंकवाद से निपटने के लिए देश में कानूनों के निर्माण की प्रक्रिया 1985 में टाडा यानी आतंकवादी तथा विघटनकारी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1985 (Terrorist and Disruptive Activities (Prevention) Act,1985) से प्रारंभ हुई थी। यह कानून मई 1985 में देश के कुछ भागों में आतंकवादी गतिविधियों की वृद्धि की पृष्ठभूमि में अधिनियमित किया गया था। 1995 में ख़त्म कर दिए गए टाडा क़ानून की जगह पर 2 अप्रैल 2002 को  आतंकवाद निरोधक क़ानून यानी पोटा (The Prevention of Terrorism Act, 2002 POTA)  लागू किया गया।
v  पोटा के तहत ऐसी कोई भी कार्रवाई जिसमें हथियारों या विस्फोटक का इस्तेमाल हुआ हो अथवा जिसमें किसी की मौत हो जाए या कोई घायल हो जाए को आतंकवादी कार्रवाई माना गया। इनके अलावा ऐसी हर गतिविधि जिससे किसी सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचा हो या सरकारी सेवाओं में बाधा आई हो या फिर उससे देश की एकता और अखंडता को ख़तरा हो, वह भी इसी श्रेणी में आती है।
v  पोटा के तहत गिरफ़्तारी महज़ शक के आधार पर की जा सकती है।
v  पुलिस को यह भी अधिकार है कि वह बिना वॉरंट के किसी की भी तलाशी ले सकती है और टेलीफ़ोन तथा अन्य संचार सुविधाओं पर भी नज़र रखी जा सकती है।
v  अभियुक्त के ख़िलाफ़ गवाही देने वालों की पहचान छिपाई जा सकती है।
v  आतंकवादियों से संबंध होने के संदेह में अभियुक्त का पासपोर्ट और यात्रा संबंधी अन्य काग़ज़ात रद्द किए जा सकते हैं।
v  अभियुक्त को तीन महीने तक अदालत में आरोप-पत्र दाख़िल किए बिना ही हिरासत में रखा जा सकता है और उसकी संपत्ति ज़ब्त की जा सकती है। 
v  इसके तहत जुर्म साबित होने पर कम से कम पाँच साल और अधिक से अधिक मौत की सज़ा दी जा सकती है।
v  पोटा कानून में तीन बार बदलाव किए गए,जिसके तहत - इसकी मियाद पाँच साल से घटा कर तीन साल कर दी गई , पत्रकारों से संबंधित प्रावधानों में ढील दे दी गई और संपत्ति ज़ब्त करने के लिए विशेष अदालत की इजाज़त ज़रूरी कर दी गई।
 

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