नई विदेश व्यापार नीतिः 2015-2020



केंद्र सरकार द्वारा नई विदेश व्यापार नीति (New Foreign Trade Policy ,2015-2020) की घोषणा 1 अप्रैल 2015 को की गई जिसमें वर्ष 2019-20 तक वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात दोगुना कर 900 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है और इसके लिए कई तरह के प्रोत्साहनों और नई संस्थागत प्रणालियों की घोषणा की है।
विनिर्माण एवं सेवा दोनों क्षेत्रों को महत्वः नई नीति में विनिर्माण एवं सेवा दोनों ही क्षेत्रों को समर्थन देने पर ध्‍यान केन्द्रित किया गया है। विनिर्माण, रोजगार सृजन को बढ़ावा देने तथा कारोबार करना आसान बनाने के लिए 2015 से 2020 तक की पंचवर्षीय विदेश व्यापार नीति को सरकार के मेक इन इंडियाऔर डिजिटल इंडिया, 'स्किल इंडिया' और 'ईज ऑफ डू‍इंग बिजनेस' जैसे महत्वपूर्ण अभियानों से जोड़ा जाएगा।
बड़ा व्यापारिक देश बनाने का लक्ष्यः इस नीति के तहत वर्ष 2020 तक भारत को बड़ा व्यापारिक देश बनाने का लक्ष्य तय किया गया है। वर्ष 2020 तक विश्व व्यापार में भारत की व्यापार भागीदारी दो प्रतिशत से बढ़ाकर 3.5 प्रतिशत तक पहुंचाने के लिए सरकार शुल्कों को तर्कसंगत बनाने का प्रयास करेगी। इस नीति के तहत भविष्य में मुक्त व्यापार समझौतों से संबंधित करार करने पर मूल्य वर्धित उत्पादों पर फोकस होगा।
दो नई योजनाः निर्यात प्रोत्साहन के लिए नई विदेश व्यापार नीति के तहत भारत से वस्तु निर्यात योजना (Merchandise Exports from India Scheme, MEIS) और भारत से सेवा निर्यात योजना (Services Exports from India Scheme, SEIS) की शुरुआत की गई है
·          निर्यात को बढ़ावा देने के लिए चलाई जा रही पुरानी योजनाओं को इन दोनों स्‍कीम के तहत लाया जाएगा। एमईआईएस को पांच मौजूदा योजनाओं- उत्पाद केंद्रित योजना, बाजार से जुड़ी उत्पाद केंद्रित योजना, बाजार केंद्रित योजना, कृषि बुनियादी ढांचा प्रोत्साहन और विशेष कृषि ग्रामीण उद्योग योजना की जगह लागू किया गया है। दूसरी ओर एसईआईएस मौजूदा एसएफआईएस (Served From India Scheme, SFIS) की जगह लेगी।
·          एमईआईएस का उद्देश्‍य विशेष बाजारों को विशेष वस्‍तुओं का निर्यात करना है। एमईआईएस के तहत जिन प्रमुख क्षेत्रों को समर्थन दिया जायेगा उनमें प्रसंस्कृत, पैकेजिंग कृषि और खाद्य वस्तुओं, कृषि और ग्रामोद्योग वस्तुएं शामिल होंगी। एमईआईएस के तहत इनाम देने के लिए देशों को तीन समूहों में श्रेणीबद्ध किया गया है। एमईआईएस के तहत इनाम की दरें 2 से लेकर 5 फीसदी तक हैं।
·          एसईआईएस का उद्देश्‍य अधिसूचित सेवाओं का निर्यात बढ़ाना है। एसईआईएस के तहत चुनिंदा सेवाओं को 3% और 5% की दर पर पुरस्कृत किया जाएगा। 
·          ई-कामर्स निर्यातकों को वस्तु निर्यात योजना के दायरे में लाया जायेगा जबकि विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) परियोजनाओं को दोनों योजना का लाभ मिलेगा। इस कदम से देश में एसईजेड के विकास को नई गति मिलेगी। 

ईपीसीजी योजना में राहतः निर्यात प्रोत्साहन के लिए पूंजीगत सामानों के आयात की रियायती ईपीसीजी (Export Promotion Capital Goods, EPCG) योजना के तहत निर्यात दायित्वों में भी राहत दी जाएगी। ईपीसीजी योजना के तहत स्‍वदेशी निर्माताओं से ही पूंजीगत सामान खरीदने के उपाय किए गए हैं। इसके तहत विशेष निर्यात प्रतिबद्धता को घटाकर सामान्‍य निर्यात प्रतिबद्धता के 75 फीसदी के स्‍तर पर ला दिया गया है। इससे घरेलू पूंजीगत सामान निर्माण उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। इस तरह के लचीलेपन से निर्यातकों को स्‍थानीय एवं वैश्विक दोनों ही तरह की खपत के लिए अपनी उत्‍पादक क्षमताओं को विकसित करने में मदद मिलेगी।

ड्यूटी क्रेडिट पर्चियों पूर्ण हस्तांतरणीयः निर्यातकों के लिए ड्यूटी क्रेडिट पर्चियों को पूरी तरह हस्तांतरणीय बनाया जाएगा। इनका इस्तेमाल सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क अथवा सेवा कर भुगतान सभी के लिए मान्य किया जाएगा। शुल्क क्रेडिट पर्चियों के रूप में जमा राशि सेनवैट क्रेडिट अथवा शुल्क वापसी दोनों के लिए मान्य होगी

मंजूर निर्यात प्रणालीः ऐसे निर्माता जो दर्जा धारक भी हैं, वे अब से अपने निर्मित उत्‍पादों को इस बात के लिए चरणबद्ध ढंग से खुद प्रमाणित कर सकेंगे कि वे मूल रूप से भारत के ही हैं। इससे द्वपक्षीय एवं क्षेत्रीय व्‍यापार समझौतों में वरीयता पाने में मदद मिलेगी। इस 'मंजूर निर्यात प्रणाली' से इन निर्यातकों को अंतर्राष्‍ट्रीय बाजारों में अपनी पहुंच बनाने में आसानी होगी।

ई-कॉमर्स कंपनियों को समर्थनः इस नीति के तहत ई-कॉमर्स कंपनियों को भी निर्यात के लिए प्रोत्‍साहित किया जाएगा। नौकरियां पैदा करने वाले सेक्‍टरों से निर्यात पर रियायतें प्रदान की जाएंगी। इसके साथ ही हथकरघा उत्‍पादों एवं किताबों, चमड़े के जूते-चप्‍पल और खिलौनों के ई-कॉमर्स निर्यात को भी वस्तु निर्यात योजना  का लाभ (25 हजार रुपये तक के मूल्‍य के लिए) दिया जायेगा। 

छोटे और मध्यम उद्यमों को महत्वः विनिर्माण क्षेत्र और रोजगार सृजन में छोटे और मध्यम पैमाने के उद्यमों के महत्व को देखते हुए सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के 108 समूहों की पहचान की गई है।

उच्च वैल्‍यू ऐडेड उत्‍पादों के निर्यात पर फोकसः नई विदेश व्‍यापार नीति में जीरो डिफेक्‍ट उत्‍पाद बनाने पर जोर दिया गया है। नई नीति में उच्च वैल्‍यू ऐडेड उत्‍पादों के निर्यात पर फोकस किया गया है। इसमें पर्यावरण के अनुकूल उत्‍पाद बनाने की बात भी कही गई है। नई नीति श्रम को प्रोत्‍साहित करने वाले उत्‍पादों के निर्यात को बढ़ावा देगी। रक्षा एवं हाई-टेक उत्‍पादों के निर्यात को नई गति प्रदान करने के भी उपाय किए गए हैं। विदेश व्यापार नीति में कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए उच्चस्तरीय प्रोत्साहन दिया जाएगा।

राज्यों को निर्यात वृद्धि में सहायताः राज्यों के साथ निर्यात बढ़ाने के लिये काम करने के वास्ते एक निर्यात संवर्धन मिशन स्थापित करने पर जोर दिया गया है। राज्‍यों को निर्यात की रणनीति बनाने में केंद्र की मदद दी जाएगी।

प्रक्रिया सरलीकरणः नई विदेश व्‍यापार नीति में व्यापार लेनदेन से जुड़ी प्रक्रियाओं के डिजिटाइजेशन का प्रावधान भी किया गया है। नई नीति का एक प्रमुख उद्देश्य सप्ताह के सातों दिन 24 घंटे 'कागज रहित कामकाज' की तरफ कदम बढ़ाना है।

ढाई वर्षीय समीक्षाः विदेश व्‍यापार नीति की सालाना समीक्षा के बजाय अब ढाई साल में समीक्षा की जाएगी।

ब्रांड इंडियाः भारतीय उत्‍पादों को नई पहचान दिलाने के लिए सरकार एक ब्रांडिंग कैंपेन भी शुरू करेगी। ब्रांड इंडिया तैयार करने के लिये एक दीर्घकालिक ब्राडिंग रणनीति की अवधारणा की गई है ताकि उंची प्रतिस्पर्धा भरे वैश्विक परिवेश में भारतीय उत्पाद टिके रहें और उच्च गुणवत्ता के साथ ब्रांड इंडियाकी पहचान बने।

विश्व व्यापार में भागीदारी में वृद्धिः विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी बढ़ाने और विश्व व्यापार संगठन (WTO) के तहत दायित्वों को निभाने के लिये विदेश व्यापार नीति में कई संस्थानों की स्थापना करने का भी प्रस्ताव किया गया है। व्यापार परिषद और राष्ट्रीय व्यापार सुविधा समिति जैसे कई संस्थान स्थापित किये जायेंगे। व्यापार नीति में कस्टम प्रक्रियाओं को भी सरल बनाने पर जोर दिया गया है ताकि निर्यातकों की लेनदेन लागत कम हो।
  

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