भारतीय नेविगेशन प्रणाली की दिशा में एक और कदमः IRNSS-1D




भारत के नए नेविगेशन उपग्रह आईआरएनएसएस-1डी (IRNSS-1D ) का प्रक्षेपण ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी-27 (PSLV-C 27) के द्वारा श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 28 मार्च,2015 को किया गया। इसरो ने भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणालीआईआरएनएसएस (Indian Regional Navigational Satellite SystemIRNSS) के  गठन के लिए सात उपग्रहों के जिस समूह की योजना बनाई है उसमें IRNSS-1D चौथा है। 1,425 किलोग्राम भार वाला IRNSS-1D नेविगेशनलट्रैकिंग और मानचित्रण सेवा मुहैया कराएगा और इसका जीवनकाल 10 वर्ष का होगा। इस उपग्रह को पहले 9 मार्च को छोड़ा जाना था। बाद में ट्रांसमीटरों में गड़बड़ी पाए जाने के बाद प्रक्षेपण टाल दिया गया था। पीएसएलवी का यह 29वां मिशन है। इससे पहले पीएसएलवी के 28 मिशन सफल हो चुके हैं। इस सफलता के साथ भारत उन देशों के समूह में शामिल होने की दिशा में आगे बढ़ गया हैजिनके पास खुद का नेविगेशन सिस्टम है।

भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS)

Ø  1990 के शुरुआती दशक में नौवहन प्रणाली की अवधारणा अस्तित्व में आई और 2006 में इसे मंजूरी मिल गई।
Ø  आईआरएनएसएस  इसरो द्वारा विकसितएक क्षेत्रीय स्वायत्त नौवहन उपग्रह प्रणाली  है जो पूर्णतया भारत सरकार के अधीन होगी।
Ø  आईआरएनएसएस परियोजना के तहत सात उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजने की योजना हैजिनमें चार का प्रक्षेपण किया जा चुका है।
Ø  पहला उपग्रह आईआरएनएसएस-1ए जुलाई 2013 में छोड़ा गया था। दूसरा उपग्रह आईआरएनएसएस-1बी अप्रेल 2014, जबकि तीसरा उपग्रह 16 अक्टूबर, 2014 को छोड़ा गया था। साल 2015 के मध्य तक नौवहन सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए साल 2015  कम से कम दो और उपग्रह तथा 2016 में एक नौवहन उपग्रह छोङा जा सकता है।
Ø  इस पूरी प्रणाली में नौ उपग्रह शामिल हैंजिनमें सात उपग्रह कक्षा में और दो भूतल पर हैं।
Ø  आईआरएनएसएस के तीन उपग्रह भूस्थिर कक्षा (Geostationary Orbitके लिए और चार उपग्रह भूस्थैतिक कक्षा (Geosynchronous Orbit के लिए हैं।
Ø  न्यूनतम जानकारी हासिल करने के लिए चार उपग्रह छोड़े जाने जरूरी थेशेष तीन उपग्रह उसे और सटीक और कुशल बनाएंगे। सभी सातों उपग्रहों के ऑपरेशनल होने के बाद यह प्रणाली सटीक तथा ज्यादा कारगर बन जाएगी।  
Ø  आईआरएनएसएस के पूर्ण रूप से अमल में आने पर भारत अपनी जरूरतें तो पूरी करेगा ही सीमा के 15 सौ किलोमीटर के दायरे में आने वाले देशों को भी जीपीएस सेवा मुहैया कराने में सक्षम हो जाएगा।
Ø  परियोजना के तहत सभी सात उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजने के बाद भारत को लोकेशनट्रैकिंगमैपिंग आदि के लिए जीपीएस या ग्लोनास की सेवाओं पर आश्रित नहीं रहना पड़ेगा।
Ø  प्रत्येक उपग्रह की लागत लगभग 150 करोड़ रुपए है। पीएसएलवी-एक्सएल संस्करण रॉकेट की लागत लगभग 130 करोड़ रुपए है। इन सात रॉकेटों की कुल लागत लगभग 910 करोड़ रुपए है।

उपयोग

·          देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना 
·          नक्शा तैयार करना।
·          जियोडेटिक आंकड़े जुटाना।
·          चालकों के लिए दृश्य और ध्वनि के जरिये नौवहन की जानकारी।
·          मोबाइल फोनों के साथ एकीकरण।
·          भूभागीय हवाई व समुद्री नौवहन तथा यात्रियों व लंबी यात्रा करने वालों को भूभागीय नौवहन की जानकारी देना।
·          इसके आँकड़ों के विश्लेषण से आपदा प्रबंधन जैसे कार्यों में मदद मिल सकेगी।
·          आईआरएनएसएस दो तरह की सेवाएं प्रदान करेगा -स्टैंडर्ड पोजिशनिंग सेवा और लिमिटेड सेवा। पहली सेवा सभी उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध होगी और दूसरी सिर्फ अधिकृत उपभोक्ताओं के लिए होगी।


*TOI*

उपग्रह नौवहन प्रणाली 

उपग्रह नौवहन प्रणाली (Satellite Navigation System)  कृत्रिम उपग्रहों की एक प्रणाली को कहते हैं जो विश्व में सर्वत्र भू-स्पेसिअल पोजिशनिंग प्रदान करने में समर्थ हो। इस प्रणाली की सहायता से छोटे इलेक्ट्रानिक रिसीवर अपनी स्थिति (अक्षांशदेशान्तर तथा ऊँचाई) की अत्यन्त यथार्थता (precision) से गणना कर लेते हैं। ये इलेक्ट्रानिक रिसीवर वर्तमान स्थानीय समय की गणना भी कर लेते हैं।

अन्य देशों की नौवहन प्रणाली 

*         अमेरिका - ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS)
*         रूस - ग्लोबल ऑर्बिटिंग नैविगेशन सैटेलाइट प्रणाली यानी ग्लोनास (GLONASS)
*         यूरोप - गैलीलियो ( Galileo)
*         चीन - बेइदोउ (BeiDou)
*         जापान - क्वासी-जेनिथ सैटेलाइट सिस्टम (Quasi-Zenith Satellite System )

जीपीएस और ग्लोनास पूरी तरह सक्रिय वैश्विक प्रणालियां हैंलेकिन चीन और जापान की प्रणालियां क्षेत्रीय कवरेज प्रदान करती हैं और यूरोप का गैलीलियो अभी तक सक्रिय नहीं हुआ है।

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