मिशन इन्द्रधनुष

भारत सरकार द्वारा  सात टीका निवारणीय रोगों के खिलाफ सभी बच्चों का टीकाकरण करने के लिए 25 दिसंबर 2014 को मिशन इन्द्रधनुष (Mission Indradhanush)  शुरू किया गया। इस मिशन का उद्देश्य वर्ष 2020 तक ऐसे सभी बच्चों का टीकाकरण करना हैजिन्हें सात बीमारियों से लड़ने के टीके नहीं लगाये गए हैं या आंशिक रूप से लगाये गये हैं इस कार्यक्रम के अंतर्गत जनवरी 2015 से जून 2015 तक टीकाकरण के चार विशेष अभियान चलाए जाएंगे। पोलियो कार्यक्रम को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए जिन उपायों को अपनाया गया थाउनको इस मिशन की योजना बनाने और उसे लागू करने में प्रयुक्त किया जाएगा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 23 मार्च 2015 को मिशन इन्द्रधनुष के लिए मीडिया अभियान की शुरुआत की है।

     मिशन इन्द्रधनुषः प्रमुख बिंदु

v  इस मिशन के तहत शामिल सात बीमारियां हैं –
डिप्थीरिया (Diphtheria), 
काली खाँसी (Whooping cough), 
टिटनेस (Tetanus), 
पोलियो (Polio), 
टीबी (Tuberculosis), 
खसरा (Measles) 
हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B)

v  मिशन के अन्तर्गत टीकाकरण कार्यक्रम में पिछड़े क्षेत्रों को लक्ष्य किया जायेगाजिसमें पांच साल से कम उम्र तक के बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण किया जाना है। इस कार्यक्रम का अंतिम लक्ष्य भारत में सभी बच्चों और गर्भवती महिलाओं को ऐसी बीमारियों से सुरक्षित करना है जिनसे बचाव संभव है।

v  विशेष टीकाकरण अभियान के जरिए निम्नलिखित क्षेत्रों को लक्ष्य बनाया जाएगा:
·         प्रवासियों की शहरी झुग्गी बस्तियां
·         घुमंतू प्रजातियां
·         भट्टा मजदूर
·          निर्माण स्थल
·         अन्य प्रवासी ( मछुआरों के गांव, दूसरी जगह रहने वाली आबादी के नदी तटीय क्षेत्र इत्यादि)
·          अल्प सेवा पहुंच वाले और दूर दराज के क्षेत्र ( वन क्षेत्र में रहने वाली और आदिवासी आबादी इत्यादि)

v  इस मिशन के पहले चरण में 201 जिलों का चयन भारत सरकार ने किया है जहाँ टीकाकरण की परिधि से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या लगभग 50% है। इन 201 जिलों में से 82 जिले उत्तर प्रदेशबिहारमध्य प्रदेशऔर राजस्थान से हैं जिनमें संपूर्ण देश के 25% प्रतिशत टीकारहित या आंशिक रूप से टीका लगे बच्चे निवास करते हैं।


v  दूसरे चरण में 297 जिलों में इस मिशन को लागू करने का लक्ष्य रखा गया है।


v  वर्ष 2009-13 के बीच टीकाकरण में 1% प्रतिवर्ष वृद्धि हुई है। वर्ष 2009 में 61% बच्चों का टीकाकरण हुआ जो 2013 में बढ़कर 65% हो गया। मिशन इन्द्रधनुष के तहत टीकाकरण की वृद्धि दर प्रतिवर्ष 5% के साथ वर्ष 2020 तक सभी बच्चों का टीकाकरण करना है।


v  स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा इस कार्यक्रम की कड़ी निगरानी के लिए एक वृहत तंत्र स्‍थापित किया है। स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों, अधिकारियों और विभिन्‍न भागीदारों के जरिए राज्‍य, जिला और ब्‍लॉक स्‍तर पर कार्यान्‍वयन के निरीक्षण और निगरानी के लिए बहु-स्‍तरीय संरचना डिजाइन की गई है।

v   देश में नियमित टीकाकरण कवरेज बढ़ाने में सहयोगात्‍मक और सहक्रियाशील दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय, अन्‍य मंत्रालयों, जारी कार्यक्रमों और अंतर्राष्‍ट्रीय साझेदारों के साथ सहयोग करेगा। जिसके तहत इस मिशन में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), यूनीसेफ (UNICEF), रोटरी इंटरनेशनल (Rotary International) और अन्य संस्थाएं अपना तकनीकी सहयोग प्रदान करेंगी, साथ ही आशा-सहयोगिनियोंआंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं  स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाओं का सहयोग लिया जाएगा।
   टीकाकरण

बच्‍चों के शरीर मे रोग प्रतिरक्षण हेतु टीके लगाए जाते हैं जिससे बच्‍चो के शरीर की रोग से लडने की शक्ति बढती है। टीकाकरण से बच्‍चों मे कई सक्रांमक बीमारियों की रोकथाम होती है तथा समुदाय के स्‍वास्‍थ्‍य के स्‍तर मे सुधार होता है। प्रत्‍येक वर्ष 1.7 मिलियन बच्‍चे उन बीमारियों के कारण मर जाते हैं जिन्‍हें उपलब्‍ध टीकों से रोका जा सकता था। जो बच्‍चे टीकाकृत हैं वे उन खतरनाक बीमारियों से सुरक्षित होते हैंजो अक्‍सर अक्षमता या मृत्‍यु का कारण बनती हैं। सभी बच्‍चों को इस सुरक्षा का अधिकार है।


सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम 
टीका लगाने की संख्या, लाभार्थियों की संख्यासंगठित टीकाकरण सत्र की संख्याकवर क्षेत्रों का भौगोलिक प्रसार और विविधता के मामले में यह दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। डीपीटीओपीवी और बीसीजी के साथ जीवन के पहले वर्ष के दौरान सभी बच्चों के टीकाकरण की राष्ट्रीय नीति 1978 में अपनाई गई। इसके तहत एक वर्ष की उम्र तक पहुंचने से पहले ही प्राथमिक टीकाकरण की श्रृंखला को पूरा कर लिया जाता है। प्रारंभिक अवस्था में 80% टीकाकरण करने के मकसद से ईपीआई कार्यक्रम को शुरू किया गया था। सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunization Program, UIP) को 1985 में चरणबद्ध तरीके से शुरू किया गया और 1990 में बच्चों को अनुपूरक तौर पर विटामिन ए देने का कार्यक्रम भी जोड़ा गया।

यूआईपी के तहत टीकाकरण कार्यक्रम
·          बीसीजी (बैसिल्लस काल्मेट्ट ग्यूरिन) 
·          डीपीटी (डिप्थीरियापर्टसिस और टेटनस टॉक्साइड)
·          ओपीवी (ओरल पोलियो वैक्सीन)
·          हेपटाइटिस बी टीका
·           खसरा
·          टीटी (टिटनस टॉक्सॉइड
·          गर्भवती महिलाओं के लिए टीटी
·          इसके अतिरिक्त, जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई वैक्सीन) टीका 2006-10 के दौरान चरणबद्ध तरीके से अभियान के रूप में 112 स्थानिक जिलों में शुरू की गई थी और अब इसे नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के तहत शामिल किया गया है।
भारत ने 2014  में तीन नए टीके की शुरुआत के साथ अपने प्रतिरक्षण कार्यक्रम का विस्तार किया। पूर्ण टीकाकरण का लाभ देश के सभी बच्चों को मिले यह सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है।

भारतीय परिदृश्य
भारत में हर साल 2.7 करोड़ बच्चे पैदा होते हैं। करीब 18.3 लाख बच्चे अपना पांचवां जन्मदिन मनाने से पहले ही मर जाते हैं। कम आय़ अर्जित करने वाले परिवारों के ज्यादातर बच्चे बीमारियों का शिकार होते हैं। भारत में रिकॉर्ड तौर पर 5 लाख बच्चे टीकाकरण से ठीक होने वाली बीमारियों के चलते हर साल दम तोड़ देते हैं। टीकाकरण से ठीक होने वाली बीमारियों के कारण बाल मृत्युदर सबसे अधिक है जबकि भारत के 30 फीसदी बच्चे हर साल पूर्ण टीकाकरण से वंचित रह जाते हैं। यही कारण है कि एक अनुमान के मुताबिक देशभर में 89 लाख बच्चों को या तो केवल कुछ ही टीके लग पाते या तो कई बिल्कुल ही इससे वंचित रह जाते हैं। भारत में प्रत्येक 3 बच्चों में एक बच्चा सर्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम  के तहत उपलब्ध पूर्ण टीकाकरण का लाभ नहीं ले पाता है। शहरी क्षेत्रों के पांच प्रतिशत जबकि ग्रामीण इलाकों में आठ प्रतिशत बच्चे टीकाकरण से वंचित रह जाते हैं।
भारत सरकार ने बाल मृत्यु रोकने के लिए सबसे कम लागत में प्रभावी टीकाकरण शुरू करने का कार्यक्रम चलाया है। भारत का व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम देश में सबसे बङे सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों में से एक है जिसके तहत देश भर के 35 राज्यों में 27,000 वैक्सीन भंडारण इकाइयों के साथ एक व्यापक वैक्सीन वितरण प्रणाली काम कर रही है।

चुनौतियां
सभी सकारात्मक परिवर्तनों के बावजूद इस कार्यक्रम में कई चुनौतियां और कमियां अब भी बरकरार हैं। राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत टीकों का दायरा जरूरत से कम है और आंतरिक और अंतरराज्यीय स्तर पर अंतर अनुकूलतम स्थिति की ओर इशारा नहीं करते हैं। राज्यों और जिलों के भीतर आंशिक रूप से टीकारण का लाभ लेने वाले और इससे वंचित रहने वाले बच्चों के अनुपात में व्यापक अंतर आ रहा है। आंकड़ों का एकत्रीकरण और रिपोर्टिंग उपानुकूलतम स्थिति को दिखाते हैं तथा बीमारियों की निगरानी प्रणाली में और सुधार किए जाने की जरूरत है। यह इन कारणों का पता लगाने और उन जिलों की पहचान करने के लिए महत्वपूर्ण है जहां व्यवस्थित टीकाकरण अभियान चलाए की जरूरत है। इसके अलावा, सभी उपलब्ध जीवन रक्षक टीकों के साथ सभी बच्चों तक पहुंचने के लिए अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत है।
उपलब्ध ज्ञान और अतीत से सीख लेते हुए लक्षित लाभार्थियों को जीनवरक्षक टीके पहुंचाने में पेश आ रही चुनौतियों को रेखांकित किए जाने की जरूरत है। बीमारियों से निपटने के लिए भारत में प्रयास हो रहा है। हालांकि देश में टीकाकरण का इतिहास बताता है कि अनिच्छा औऱ टीकाकरण की धीमी गति के कारण लोगों के बीच इस मुहिमों को स्वीकृति मिलने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।  अतीत की घटनाओं से सबक लेते हुए और उसका विश्लेषण करते हुए टीकाकरण के प्रयासों का मार्गदर्शन करने के लिए कुछ चीजें निर्धारित की गई हैं।


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