स्वाइन फ्लूः लक्षण, बचाव और उपचार


भारत में स्वाइन फ्लू (swine flu) राजस्थान,गुजरात,मध्य प्रदेश और दिल्ली सहित कई राज्यों में गंभीर रुप धारण कर चुका है। जिसकी वजह से कई लोग हर दिन दम तोड़ रहे हैं। स्वाइन फ्लू से बचाव इसे रोकने का सबसे बड़ा उपाय है ।

स्वाइन फ्लू
स्वाइन फ्लू श्वसन तंत्र से जुड़ी संक्रामक बीमारी है, जो टाइप-ए इनफ्लुएंजा वायरस से होती है। इस वायरस को H1N1 के नाम से जाना जाता है। यह वायरस दूषित वातावरण, दूषित वायु एवं श्वास-प्रश्वास के माध्यम से संक्रमित होता है। मौसमी फ्लू में भी यह वायरस सक्रिय होता है। बहुत ही कम मामलों में स्वाइन फ्लू गंभीर रूप धारण करती है और मृत्यु का कारण बनती है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, जिन लोगों का स्वाइन फ्लू टेस्ट पॉजिटिव आता है, उनमें से इलाज के दौरान मरने वालों की संख्या केवल 0.4 फीसदी ही है।

सामान्य फ्लू और स्वाइन फ्लू में अंतर
सामान्य फ्लू और स्वाइन फ्लू के वायरस में एक अंतर यह होता है कि स्वाइन फ्लू के वायरस में चिड़ियों, सूअरों और इंसानों में पाया जाने वाला जेनेटिक मटीरियल भी होता है। सामान्य फ्लू और स्वाइन फ्लू के लक्षण एक जैसे ही होते हैं, लेकिन स्वाइन फ्लू में जुकाम बहुत तेज होता है। नाक ज्यादा बहती है।

लक्षण
- नाक का लगातार बहना, छींक आना, नाक जाम होना।
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मांसपेशियां में दर्द या अकड़न महसूस करना।
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सिर में भयानक दर्द।
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कफ और कोल्ड, लगातार खांसी आना।
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उनींदे रहना, बहुत ज्यादा थकान महसूस होना।
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बुखार होना, दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना।
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गले में खराश होना और इसका लगातार बढ़ते जाना।

वायरस का संक्रमण
एच1एन1 वायरस स्टील, प्लास्टिक में 24 से 48 घंटे, कपड़े और पेपर में 8 से 12 घंटे, टिश्यू पेपर में 15 मिनट और हाथों में 30 मिनट तक सक्रिय रहते हैं। इन्हें खत्म करने के लिए डिटर्जेंट, एल्कोहल, ब्लीच या साबुन का इस्तेमाल कर सकते हैं। किसी भी मरीज में बीमारी के लक्षण संक्रमण के बाद 1 से 7 दिन में विकसित हो सकते हैं। लक्षण दिखने के 24 घंटे पहले और 8 दिन बाद तक किसी और में वायरस के संक्रमण का खतरा रहता है।

प्रसार
खांसने या छींकने पर हवा में या जमीन पर या जिस भी सतह पर थूक या मुंह और नाक से निकले द्रव कण गिरते हैं, वह वायरस की चपेट में आ जाता है। ये कण हवा के द्वारा या किसी के छूने से दूसरे व्यक्ति के शरीर में मुंह या नाक के जरिए प्रवेश कर जाते हैं। मसलन  दरवाजे, फोन, कीबोर्ड इत्यादि के जरिए भी ये वायरस फैल सकते हैं, अगर इन चीजों का इस्तेमाल किसी संक्रमित व्यक्ति ने किया हो।

स्वाइन फ्लू का सर्वाधिक खतरा
- दमा जैसी सांस की बीमारी वाले लोगों में।
- जिन्हें ह्रदय की, यकृत की या मस्तिष्क संबंधी (न्यूरोलॉजिकल) बीमारी है।
- जिन्हें मघुमेह है ।
- गर्भवती महिलाओं और 5 साल से कम आयु के बच्चों को।
- कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग।

स्वाइन फ्लू से बचाव
- साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए और फ्लू के शुरुआती लक्षण दिखते ही सावधानी बरतें और डॉक्टर से संपर्क करें ।
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खांसी या छींक आने पर रूमाल या टिश्यू पेपर का उपयोग करें।
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थोड़ी-थोड़ी देर में हाथ को साबुन और पानी से धोते रहें।
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लोगों से मिलने पर हाथ मिलाने, गले लगने से बचें।
- यदि आपको जुकाम के लक्षण दिखाई दे तो घर से बाहर ना जाएं और दूसरों के नजदीक ना जाएं।

उपचार
स्वाइन फ्लू का इलाज आम तौर पर संभव है। पीसीआर टेस्ट के माध्यम से यह पता चलता है कि किसी को स्वाइन फ्लू है। स्वाइन फ्लू होने के पहले 48 घंटों के भीतर इलाज शुरू हो जाना चाहिए। एंटीवायरल दवाओं जैसे कि Oseltamivir (Tamifu) और Zanamivir (Relenza) का कोर्स करने से इस बीमारी से लङा जा सकता है। इन दवाइयों से रोग का पूर्णतः उपचार नहीं होता है लेकिन ये दवाएं इस वायरस को फैलने और अपनी संख्या बढाने से रोकती हैं। ये दवाइयां चिकित्सकों के निरीक्षण में ही लेनी चाहिए। इनके कुछ साइड इफेक्ट भी हैं जैसे कि जी मचलाना,ऊल्टी, बैचेनी आदि।


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