राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोगः कॉलेजियम प्रणाली की समाप्ति


राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने  के साथ ही उच्च न्याया और उच्चतम न्याया में जजों की नियुक्ति करने की 20 साल पुरानी प्रक्रिया कॉलेजियम प्रणाली समाप्त हो गई। उच्चतम न्याया और 24 उच्च न्यायाय में जजों की नियुक्ति तथा स्थानांतरण का काम अब राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग करेगा। संसद ने अगस्त 2014 में न्यायिक नियुक्ति आयेाग को स्थापित करने के लिए इस विधेयक को पारित कर दिया था राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग  विधेयक एक संविधान संशोधन विधेयक (12वां संविधान संशोधन विधेयक, 2014 ) है और किसी भी संविधान संशोधन विधेयक को 50 फीसदी विधानसभाओं की मंजूरी लेनी अनिवार्य होती है। इसके लिए पूर्व  में ही 29 में से 16 राज्य विधानमंडलों ने इस पर अपनी मंजूरी दे दी थी। इस प्रकार राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हो गया है।
                                                        ज्ञातव्य हो कि 121वें संविधान संशोधन विधेयक मेंसंविधान के अनुच्छेद 124 (2) जो कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति से सम्बंधित हैऔर अनुच्छेद 124 A, अनुच्छेद 124B, और अनुच्छेद 124C, जो कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की संरचना और कार्य से सम्बंधित हैके संशोधन का प्रवाधान है।इस विधेयक में उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया का प्रावधान करने के साथ ही साथ इन न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू करने की समय-सीमा का भी प्रावधान किया गया है

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की संरचना

v  छह सदस्यीय इस आयोग में उच्चतम न्याया  के मुख्य न्यायाधीश अध्यक्ष के रूप में होंगे तथा सदस्यों में कानून मंत्रीउच्चतम न्याया के दो सीनियर जज और दो अन्य नामचीन हस्तियां होंगी।
v  दो नामचीन हस्तियों का चयन प्रधानमंत्रीउच्चतम न्याया  के मुख्य न्यायाधीश और नेता विपक्ष (या लोकसभा में सबसे बड़े दल के नेता) का समिति द्वारा किया जाएगा। इसमें आरक्षण का प्रावधान होगा और एक सदस्य को महिलाअल्पसंख्यकअनुसूचित जाति और जनजाति से रोटेशन के आधार पर नियुक्त किया जाएगा इनका कार्यकाल 3 वर्ष का होगा।
v  आयोग के संयोजक कानून सचिव होंगे। 
v  किसी वरिष्ठ न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को नाम भेजने के लिए उसके पक्ष में पांच मत होने ज़रूरी हैं। अगर दो सदस्य किसी नाम का विरोध करते हैं तो उसे हटा दिया जाएगा।
v  आयोग द्वारा भेजे गए किसी नाम को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं और उस नाम को पुनः राष्ट्रपति के पास तभी भेजा जा सकता है जब उस नाम पर आयोग के सभी छह सदस्यों की सहमति हो। सभी छह सदस्यों की सहमति से पुनः भेजे गए नाम को मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति बाध्य होंगे।
v  आयोग के किसी भी कार्य या सिफारिश पर इस आधार पर सवाल नहीं उठाया जा सकता कि आयोग का कोई पद खाली था

प्रभाव

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के जरिए उच्च और उच्चतम न्यायालय में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने का प्रयास किया गया है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के मामले में  सामूहिक बुद्धिमत्ता के सिद्धांत पर बल दिया है। इसमें दो प्रख्यात व्यक्तियों को इसलिए रखा गया है ताकि सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिल सके। आयोग में कानून मंत्री को पदेन सदस्य के रुप में शामिल किए जाने से जजों की नियुक्तियों के मामले में कार्यपालिका की भूमिका बढ गई है। जजों की नियुक्ति के मामले में यह प्रावधान है कि किसी नाम पर आयोग के दो या ज्यादा सदस्यों की असहमति होने पर आयोग द्वारा उस नाम पर विचार नहीं किया जाएगा।इस प्रावधान ने नियुक्तियों के मामले में न्यायपालिका की ताकत को काफी हद तक सीमित कर दिया है।साथ ही, किसी नियुक्ति पर असहमति की स्थिति में न्यायपालिका और कार्यपालिका में टकराव की संभावना बढ सकती है।

कॉलेजियम प्रणाली

Ø  कॉलेजियम को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों की नियुक्तियां और तबादलों का अधिकार होता था। दुनिया में यह एक अकेली ऐसी प्रणाली थी जिसमें जज ही जजों को नियुक्त कर रहे थे।
Ø  कॉलेजियम सिस्टम के तहतसरकार की सलाह पर काम कर रहे राष्ट्रपति कोन्यायपालिका में नियुक्ति के प्रस्तावित नाम पर मुख्य न्यायाधीश को पुनर्विचार करने के लिए कहने का अधिकार है।लेकिन अगर कॉलेजियम अपनी बात पर अड़ जाता हैपारंपरिक रूप से ऐसा एकमत से होना चाहिएतब सरकार और राष्ट्रपति के पास उस व्यक्ति को न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता।
Ø  उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम में मुख्य न्यायाधीश समेत उच्चतम न्यायालय के पांच जज होते थे, वहीं उच्च न्यायालय का कॉलेजियम तीन सदस्यों पर आधारित होता था।
Ø  मुख्य न्यायाधीश जे एस वर्मा के नेतृत्व वाली उच्चतम न्यायालय की 9-सदस्यीय संवैधानिक खंडपीठ ने अक्तूबर 1993 को तय किया कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश का रूतबा कार्यपालिका से ऊपर है इसलिए जजों का स्थानांतरण और उनकी नियुक्तियां कॉलेजियम द्वारा की जाएंगी।
Ø  उच्चतम न्यायालय ने कॉलेजियम के संचालन के लिए एक 9-सूत्री नियमावली भी बनाई जिसमें कॉलेजियम की सर्वोचता बरक़रार रखी गई। 1998 में मुख्य न्यायायधीश बरूचा के नेतृत्व वाली संविधान पीठ ने एक अन्य फैसले में विधायिका और कार्यपालिका पर न्यायपालिका की श्रेष्ठता को बरक़रार रखा।

Ø  कॉलेजियम प्रणाली की इस आधार पर आलोचना की जा रही थी कि इसकी नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव है और कॉलेजियम में होने वाले मतभेदों के कारण उच्च न्यायालय में 200 से ज्यादा जजों के पद खाली हैं। 

Comments