बैंकिंग सुधारों के उपाय ढूंढने के लिए ज्ञान संगम
बैंकों और वित्तीय संस्थानों की 2 जनवरी से पूणे में शुरू हुई दो दिवसीय बैठक के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्गठन और पुनरुद्धार जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई ताकि दक्षता, पूंजी आवश्यकता, जोखिम आकलन और ऋण वसूली के क्षेत्र में सुधार लाया जा सके। बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए आयोजित 'रिट्रीट' बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री अरुण जेटली, आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन, वित्त मंत्रालय के अधिकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रमुख ने हिस्सा लिया। इस बैठक को 'ज्ञान संगम' का नाम दिया गया। इस बैठक का आयोजन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सुधार के लिए 'कार्य योजना' तैयार करने के लिए किया गया था और स्वीकृत होने पर बैंक तथा सरकार दोनों ही इसे लागू करेंगे।
'ज्ञान संगम' के निम्नलिखित उद्देश्य थे –
v बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित अहम मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक औपचारिक और अनौपचारिक मंच तैयार करना।
v सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों में सुधार लाने एवं उनकी स्थिति को और मजबूत करने के मकसद से क्या किया जाना चाहिए, और बीते समय में क्या गलत हुआ, इन मसलों पर सरकार और बैंकों में एक व्यापक सहमति बनाना।
v संबंधित क्षेत्र के नामी विशेषज्ञों और रिट्रीट में शिरकत करने वाले उच्च स्तर के प्रबंधकों से नए विचार और सुझाव साझा करना।
v सुधार योजना के ब्लू प्रिंट की रूपरेखा तैयार किया जाना, ताकि उसे बैंकों और सरकार द्वारा लागू किया जा सके।
जिन विषयों पर चर्चा की गई -
सरकारी बैंकों की दिक्कतों में बढ़ता एनपीए, डूबता कर्ज, खराब कॉरपोरेट गवर्नेंस, प्रदर्शन में निजी बैंकों से पीछे होना, स्किल्ड मैनपावर की कमी, भारी मात्रा में कृषि कर्ज माफी, कर्ज के रिकवरी की धीमी प्रक्रिया और कर्ज देने के लिए ऊपर से दबाव जैसे मामले शामिल हैं। इस रिट्रीट में जिन विषयों पर चर्चा हुई उनमें एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग असेट्स), वित्तीय समावेश, वित्तीय साक्षरता, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, प्राथमिक क्षेत्र को ऋण वितरण, ब्याज छूट और मानव संसाधन शामिल हैं। सितंबर 2014 के अंत तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कुल एनपीए 2.43 लाख करोड़ रुपये से अधिक पर था जो बैंकों की कुल पूंजी का 10.7 फीसदी हिस्सा है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने एनपीए की समस्या दूर करने और प्रणाली में संभावित एनपीए को साल भर के भीतर खत्म करने पर जोर दिया ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके। वित्त मंत्री ने यह कहा कि सरकार ऐसे नियमों पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार है जिससे एनपीए घटाने में मदद मिलेगी और जो बैंकों के लिए प्रमुख चुनौती बन गए हैं। जेटली ने कहा कि सरकार प्रबंधन को पेशेवर बनाने और निर्णय लेने में स्वायत्ता प्रदान करने, प्रतिभा को सम्मानित करने और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के शीर्ष प्रबंधन की नियुक्ति प्रक्रिया पर पुनर्विचार करने के मामले में ठोस फैसलों के लिए तैयार है।
बैंकरों ने अपनी ओर से सुझाव दिया कि आने वाले समय में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से नीचे लाया जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने ऋण माफी और कृषि क्षेत्र के लिए सीमित ब्याज दर जैसी बाजार विकृतियों को दूर किया जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पुनर्गठन पर भी चर्चा की गई और कहा गया कि यह काफी समय से लंबित है एवं कई छोटे बैंकों के विलय की सिफारिश के संबंध में आई रिपोर्टों के बावजूद कोई प्रगति नहीं हुई है। सार्वजनिक क्षेत्र के 27 बैंक हैं, जिनमें भारतीय स्टेट बैंक के पांच सहायक बैंक शामिल हैं।
बैंकरों ने अपनी ओर से सुझाव दिया कि आने वाले समय में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से नीचे लाया जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने ऋण माफी और कृषि क्षेत्र के लिए सीमित ब्याज दर जैसी बाजार विकृतियों को दूर किया जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पुनर्गठन पर भी चर्चा की गई और कहा गया कि यह काफी समय से लंबित है एवं कई छोटे बैंकों के विलय की सिफारिश के संबंध में आई रिपोर्टों के बावजूद कोई प्रगति नहीं हुई है। सार्वजनिक क्षेत्र के 27 बैंक हैं, जिनमें भारतीय स्टेट बैंक के पांच सहायक बैंक शामिल हैं।
ज्ञान संगम में बैंकों ने अपने लिए 1 साल और 1-3 साल के लक्ष्य बनाए हैं। बैंकों के 1 साल के लक्ष्य में 30 अहम प्रक्रियाओं को डिजिटलाइज करना, मोबाइल बैंकिंग, कॉमन केवाईसी में तेजी लाना, मोबाइल बैंकिंग और बैंक खातों के लिए एनपीसीआई कॉमन रजिस्ट्री शामिल है। 20,000 रुपये से ऊपर के डिजिटल ट्रांजैक्शन पर टैक्स इंसेंटिव लगाना और कार्ड के जरिए मर्चेंट ट्रांजैक्शन चार्ज 1.5 फीसदी से कम करना भी शामिल है। बैंकों के 1-3 साल के लक्ष्य में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर प्लैटफॉर्म तैयार करना और सभी प्रॉपर्टी और अचल लेन-देन को डीमैट करना जैसे लक्ष्य हैं।
प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करने का वचन देते हुए बैंकों से जिम्मेदाराना रवैया अपनाने को कहा, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि वे इसमें सफल नहीं हुए तो सार्वजनिक हित में हस्तक्षेप भी किया जा सकता है।मोदी ने बैंकिंग कामकाज में सुस्ती खत्म करने का भी आह्वान किया और कहा कि बैंकों को रोजगार देने वाले क्षेत्रों को कर्ज देने में प्राथमिकता देनी चाहिए। मोदी ने बैंकिंग क्षेत्र से ऐसे बैंक स्थापित करने का आह्वान किया जो कि दुनिया के शीर्ष बैंकों में शामिल हों।देश का बैंकिंग क्षेत्र उसकी अर्थव्यवस्था में वृद्धि का प्रतिबिंब होता है। जापान और चीन के आर्थिक उभार के दौर में उनके बैंक विश्व के शीर्ष दस बैंकों में शामिल थे। मोदी ने बैंकों से कहा कि वे साइबर अपराध से निपटने के लिए प्रतिबद्ध टीम बनाएं। उन्होंने वित्तीय साक्षरता के क्षेत्र में कमजोरी के मुद्दे को भी रेखांकित किया। उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के 27 बैंकों के बीच सॉफ्टवेयर जैसे क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर साझा करने का सुझाव दिया।
प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से कहा वे 2022 में देश की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ को ध्यान में रख कर लक्ष्य तय करें। उन्होंने कहा कि मैंने 2022 तक सब को आवास प्रदान करने का संकल्प लिया है और बैंकों के लिए इसमें व्यापक अवसर पैदा होंगे क्योंकि 11 करोड़ मकानों की आवश्यकता पड़ेगी। मोदी ने कहा कि कारपोरेट सामाजिक दायित्व के हिस्से के रूप में बैंकों को एक क्षेत्र का चयन रचनात्मक भूमिका अदा करने के लिए करना चाहिए।
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