देश के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-III का सफल प्रक्षेपण


मंगल अभियान की सफलता के बाद अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक और कदम आगे बढाते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से देश के अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-III का सफल प्रक्षेपण 18 दिसंबर 2014 को किया गया यान 125 किलोमीटर की ऊंचाई तक गया और उसके बाद फिर पैराशूट के सहारे बंगाल की खाड़ी में अंडमान-निकोबार में एक द्वीप पर लैंड करने में सफल रहा।इसके सफल परीक्षण के साथ ही अब भारत उन देशों की लिस्ट में शामिल हो गया हैजो अंतरिक्ष में बड़े उपग्रह भेजने की काबिलियत रखते हैं। जीएसएलवी मार्क-III रॉकेट के साथ इंसान को अंतरिक्ष में ले जाने वाले यान ( क्रू मॉड्यूल) का भी सफल परीक्षण किया गया। यह यान दो से तीन लोगों को अंतरिक्ष में ले जा सकता है। अभी तक रूसअमेरिका और चीन के पास इंसान को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता है।इस योजना पर कार्य साल 2002 से किया जा रहा था।
इस प्रक्षेपण के द्वारा जटिल वायुमंडलीय उड़ान पहलुओं के उड़ान का सत्यापन किया गया और फिर तापीय प्रतिरोधक्लस्टर फॉरमेशन में पैराशूट के संचालनएयरो ब्रेकिंग सिस्टम इत्यादि के साथ क्रू मॉडयूल के पृथ्वी के परिमंडल में फिर से प्रवेश करने की क्षमता का भी परीक्षण किया गया समुद्र से 126.16 किलोमीटर की उंचाई तक उडान के बाद क्रू मॉडयूल रॉकेट से करीब 325.52 सेकंड में अलग हुआ। विशेष तरह से निर्मित पैराशूट मॉडयूल के अंडमान निकोबार द्वीप में इंदिरा गांधी प्वाइंट से कोई सौ किलोमीटर की दूरी पर बंगाल की खाड़ी में गिरने के बाद इसे तटरक्षक द्वारा निकाल लिया गया श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने और बंगाल की खाड़ी में गिरने की इस पूरी प्रक्रिया में करीब 20 से 30 मिनट का समय लगा 
    

जीएसएलवी मार्क-III

·          इस रॉकेट की लंबाई 42.4 मीटर है
·          इसका वजन 630 टन है।
·          यह टन का वजन ले जा सकता है।
·          इस रॉकेट को तरल एवं ठोस ईंधन से ऊर्जा दी गई
·          इसके प्रक्षेपण में 155 करोङ की लागत आई है,जिसमें रॉकेट पर 140 करोड़ रुपये का खर्च और क्रू मॉड्यूल पर 15 करोड़ रुपये का खर्च आया है। 
·          जिओ सिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल यानी जीएसएलवी मार्क-की यह पहली टेस्ट फ्लाइट है।
·          जीएसएलवी मार्क-रॉकेट पूर्णतया स्वदेशी है।
·          प्रयोग के तौर पर अंतरिक्ष में भेजे गए इस रॉकेट में वास्तविक क्रायोजेनिक इंजन नहीं है। यह अभी निर्माणाधीन है और इसके बनने में करीब दो साल का वक्त लगेगा। हालांकि रॉकेट की संरचना के व्यावहारिक अध्ययन के लिए इसरो ने इसमें नकली क्रायोजेनिक इंजन लगाया हैजो अंतरिक्ष यान को ऊर्जा देने वाले वास्तविक क्रायोजेनिक इंजन की तरह ही है। इस नकली क्रायोजेनिक इंजन में भी मास सिमुलेशन के लिए तरल नाइट्रोजन भरा गया है।

उद्देश्य

·          नई पीढ़ी के प्रक्षेपण यान के विकास और अंतरिक्ष से धरती पर लौटने की तकनीक हासिल करने के लिए इसरो ने यह  सफल परीक्षण किया है। यह इसरो का यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की योजना का हिस्सा है।
·          जीएसएलवी मार्क-III की परिकल्पना और उसकी डिजाइन इसरो को इनसैट- श्रेणी के 4,500 से 5,000 किलोग्राम वजनी भारी कम्युनिकेशन सैटलाइट्स को लॉन्च करने की दिशा में पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाएगा।
·          अरबों डॉलर के वाणिज्यिक प्रक्षेपण बाजार में भारत की क्षमता में इजाफा होगा।
·          क्रू मॉड्यूल की टेस्टिंग की सफलता से भारत इंसान को अंतरिक्ष में भेजने की दिशा में आगे बढ़ गया है।


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