भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधनः आर्थिक सुधार और किसान कल्याण 

उद्योगों और अवस्थापना परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण को ज्यादा सरल बनाने हेतु केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश के जरिए भूमि अधिग्रहण पुनर्वास एवं मुआवजा अधिनियम-2013 में संशोधन का निर्णय लिया गया है। उल्लेखनीय है कि संसद के शीतकालीन सत्र के खत्म होने के बाद सरकार द्वारा यह चौथा अध्यादेश लाया गया है इससे पहले कोयलाबीमामेडिकल सेक्टर में सरकार अध्यादेश ला चुकी है नए भूमि अधिग्रहण कानून में भूस्वामियों (किसानों) को जमीन अधिग्रहण के बदले दिए जाने वाले मुआवजे के प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं किया गया है, लेकिन पीपीपी की खिड़की के जरिए सरकार ने निजी क्षेत्र को किसानों की जमीन लेने के रास्ते खोल दिए हैं।ज्ञातव्य हो कि सितंबर 2013 में यूपीए सरकार ने 119 साल पुराने कानून को हटाकर नया भूमि अधिग्रहण कानून बनाया था।

इसके साथ ही सरकार ने इस कानून में पांच ऐसे नए वर्ग जोड़ दिए हैंजहां भूमि अधिग्रहण में कुछ छूट देने या लचीलापन लाने का प्रावधान किया गया है ये हैं-
·          रक्षा व आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मामले
·          ग्रामीण आधारभूत संरचना
·          शहरी विकास व हाउसिंग
·          औद्योगिक गलियारे का निर्माण
·          आधारभूत संरचना व सामाजिक आधारभूत संरचना
इसका तात्पर्य यह है कि उक्त परियोजनाओं के लिए 70 या 80 फीसदी जमीन व्यक्तिगत तौर पर आपसी बातचीत से खरीदने की बाध्यता नहीं रहेगी और सामाजिक प्रभाव संबंधी प्रावधान भी हटा लिए गए हैं। हालांकि, इन उद्देश्यों के लिए भूमि अधिग्रहण करने की स्थिति में नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत मुआवजा और पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन पैकेज लागू होगा। साथ ही, अन्य मामलों में प्राइवेट कंपनियों के लिए जमीन अधिग्रहण में अब भी 80 फीसदी किसानों की सहमति जरूरी होगी। वहीं पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए 70 फीसदी किसानों की सहमति लेनी होगी।

मौजूदा कानून के प्रावधानों और अध्यादेश के जरिए कानून में होने वाले संशोधन में प्रमुख अंतर निम्न हैं-
                   पूर्व में
                    वर्तमान
1) यूपीए सरकार के दौरान संसद में भाजपा सहित सभी दलों की सहमति से 2013 में जो भूमि अधिग्रहण कानून पारित किया गया था उसमें सरकारी या गैर सरकारी किसी भी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण में संबंधित क्षेत्र के भूस्वामियों की कुल आबादी के 70 फीसदी लोगों की सहमति को अनिवार्य बनाया गया।
1) अध्यादेश में पांच क्षेत्रों औद्योगिक गलियाराराष्ट्रीय सुरक्षारक्षाग्रामीण अवस्थापना विद्युतीकरण और सामाजिक अवस्थापना के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) की परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में भूस्वामियों के 70 फीसदी हिस्से की सहमति की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया है।
2) 2013 में जो भूमि अधिग्रहण कानून पारित किया गया था उसमें किसानों की सिंचित कृषि भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगाई गई थी।
2) अध्यादेश ने अब इसे खत्म कर दिया है। उक्त पांच क्षेत्रों के लिए सिंचित और बहु फसलों वाली हरित भूमि का भी अधिग्रहण हो सकेगा।
अध्यादेश के मुताबिक सरकार अब जमीन का अधिग्रहण करके पीपीपी के लिए निजी क्षेत्र को दे सकती हैहालांकि स्वामित्व सरकार का ही रहेगा,लेकिन नियंत्रण और उपयोग परियोजना चलाने वाली कंपनी के पास रहेगा।

3) रेलवेराष्ट्रीय राजपथमेट्रो रेलपरमाणु ऊर्जा और बिजली जैसे 13 केंद्र सरकार की परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण पर मौजूदा कानून लागू नहीं होता था।

3) इन परियोजनाओं को भी मौजूदा जमीन अधिग्रहण कानून के दायरे में ला दिया गया है। इससे इन परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण   होने पर किसानों को ज्यादा मुआवजा मिल सकेगापुनर्वास जरूरी होगा लेकिन इसमें किसानों की सहमति को नहीं जोड़ा गया है।

                                   किसानों के लिए मुआवजाराहत और पुनर्वास के उपायों में कोई समझौता किए बिना प्रक्रिया का तेजी से निपटान सुनिश्चित करने के लिए कानून में बदलाव किया गया है। प्रस्तावित संशोधन दो लक्ष्यों को पूरा करते हैं जिनमें किसानों का कल्याण और देश की रणनीतिक और विकास की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रक्रिया में तेजी लाना शामिल है। मालूम हो कि देश में एक लाख करोड़ से अधिक के प्रोजेक्ट जमीन अधिग्रहण की दिक्क्तों के कारण अटके पड़े हैं।









 

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