शस्त्र व्यापार संधि और भारत


वैश्विक हथियार व्यापार के मामले में जिम्मेदारीजवाबदेही और पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से अप्रैल 2013 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित शस्त्र व्यापार संधि 24 दिसंबर,2014 को औपचारिक तौर पर प्रभावी हो गई। लेकिन विश्व के सबसे बड़े हथियार उत्पादक और निर्यातक देश अमेरिका ने इस संधि की औपचारिक तौर पर पुष्टि नहीं की है। रूसचीन, पाकिस्तान और भारत ने भी इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। जिन शीर्ष हथियार निर्यातकों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं और इसे अंगीकार किया हैउनमें ब्रिटेनफ्रांस और जर्मनी शामिल हैं। यह संधि सामान्य हथियार सौदे का प्रबंधन और नियंत्रण करने वाली वैश्विक संधि है,जिसका उद्देश्य विश्व भर में सामान्य हथियार से जुड़े 85 अरब डॉलर के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए समान मापदंड बनाना है। यह क़ानूनी रूप से बाध्यकारी सन्धि है।
शस्त्र व्यापार संधि एक बहुपक्षीय समझौता हैजो किसी देश को उस स्थिति में ऐसे अन्य देशों को पारंपरिक हथियारों का निर्यात करने से कानूनी तौर पर रोकता हैजहां उसे पता हो कि इन हथियारों का इस्तेमाल जनसंहारमानवता के खिलाफ अपराधों या युद्ध अपराधों में किया जा सकता है। संधि मानवाधिकार उल्लंघनों पर रोक लगाने और लोगों के कष्टों को कम करने की दिशा में एक अहम शुरुआत है। इसके द्वारा पारंपरिक हथियारों के व्यापारों के नियमन के लिए संभावित सर्वोच्च अंतरराष्ट्रीय मानकों की स्थापना का प्रयास किया गया है। इस महत्वपूर्ण संधि से जुड़े देशों की कानूनी जिम्मेदारी होगी कि वे हथियारों और युद्धक सामग्री के हस्तांतरण में सर्वोच्च आम मानकों का पालन करें। इससे हथियारों को आतंकवादियों एवं मानवाधिकार उल्लंघनकर्ताओं के हाथों में जाने से रोकने में मदद मिलेगी।
शस्त्र व्यापार संधिः मुख्य बिंदु
Ø  193 सदस्य देशों वाली संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने अप्रैल 2013 को विश्व की प्रथम संयुक्त राष्ट्र शस्त्र व्यापार संधि (ATT-Arms Trade Treaty) को भारी बहुमत से स्वीकृति प्रदान कर दी थी।
Ø   इस संधि के लागू होने के लिए इस पर हस्ताक्षर करने वाले विश्व के 50 देशों द्वारा इसका अनुसमर्थन (Ratification) आवश्यक था। संधि 24 दिसंबर,2014 को औपचारिक तौर पर प्रभावी हो गई।
Ø   यह एक बहुपक्षीय संधि है जिसके अंतर्गत विश्व में प्रतिवर्ष होने वाले लगभग 85 अरब डॉलर के परंपरागत शस्त्र व्यापार का नियमन करने तथा इनके दुरूपयोग पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान किया गया है।
Ø  इस संधि के तहत सदस्य देशों पर प्रतिबंध होगा कि वह ऐसे देशों को हथियार न दें जो नरसंहारमानवता के प्रति अपराध या आतंकवाद में शामिल होते हैं। इस संधि का यह भी मकसद है कि हथियारों की काला बाज़ारी पर रोक लगाई जाए। इस संधि के तहत देशों को सुनिश्चित करना होगा कि उनके द्वारा भेजे गए हथियार काला बाज़ार में तो नहीं पहुंच रहे हैं। 
Ø  इस संधि में शामिल होने वाले देशों को हर वर्ष हथियारों की बिक्री का लोखा जोखा भी सार्वजनिक करना होगा।
Ø  यह संधि कानूनी रुप से बाध्यकारी है।
Ø  भारत ने यह कहते हुए इसके मतदान में हिस्सा नहीं लिया कि यह संधि उसकी अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती तथा साथ ही यह परंपरागत हथियारों के अवैध व्यापार एवं इनके दुरूपयोग पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाने में भी असमर्थ प्रतीत होती है।

भारतीय पक्ष
भारत द्वारा इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया गया है। भारत का कहना है कि शस्त्र निर्यातक और आयातक देशों के बीच   जिम्मेदारी का संतुलन सुनिश्चित होना चाहिए,जबकि यह संधि हथियार निर्यातक देशों का पक्ष लेता है और आयातकों के हितों की रक्षा नहीं करता। ऐसी संधि को स्वीकार नहीं किया जा सकता जिसके तहत निर्यातक देश खुद पर बिना किसी प्रभाव के आयातक देशों के खिलाफ एकपक्षीय कदम उठाने के लिए अपने हाथ के खिलौने की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। भारत परम्परागत हथियारों का एक बड़ा आयातक है और यदि भारत इस संधि को अपनाता है तो इससे भारत की सुरक्षा व्यवस्था के नकारात्मक रुप से प्रभावित होने की संभावना है।
भारत का मानना है  कि शस्त्र व्यापार संधि को परंपरागत हथियारों की अवैध तस्करी के खिलाफ प्रभावी होना चाहिये,जबकि संधि मसौदा आतंकवाद और राज्येत्तर ताकतों के मामले में कमजोर है और इन चिंताओं का कोई जिक्र संधि के विशेष निषेधों में नहीं है। भारत का कहना है कि संधि को परंपरागत हथियारों की गैरकानूनी रूप से होने वाली तस्करी और उसके गैरकानूनी खास तौर से आतंकवादियों और अन्य अनधिकृत एवं गैरकानूनी गैर सरकारी लोगों द्वारा इस्तेमाल पर वास्तविक असर डालने वाला होना चाहिए।
भारत ऐसे देशों में शामिल है जो आतंकवादियों और आतंकी संगठनों  के हाथ में अवैध तरीके से पहुंचे हथियारों का भारी दुष्परिणाम झेल रहे हैं। भारत को अपने यहां सक्रिय गैरकानूनी माओवादी गुटों और आतंकवादी गिरोहों को सीमापार से गैरकानूनी तरीके से मिल रहे हथियारों की गंभीर समस्या से निपटना पड़ रहा है। कश्मीर सीमा पर होने वाली आतंकी घटनाएं हों या उत्तर-पूर्व में होने वाली हिंसक घटनाएं हथियारों के अवैध व्यापार का ही परिणाम हैं। लेकिन शस्त्र व्यापार संधि में ऐसी किसा व्यवस्था का प्रावधान नहीं है जो भारत की इस प्रकार की समस्या का समाधान कर सके या उसे कम कर सके।
वास्तव में यह संधि वर्तमान समय में हथियारों के व्यापार पर कारगर नियंत्रण करने का कोई साधन नहीं बल्कि एक प्रकार का घोषणा पत्र ही है। यदि इसे व्यावहारिक तौर पर लागू भी कर दिया जाए तो इसकी संभावना कम ही है कि यह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल हो पाएगा। इसमें सिर्फ हथियारों के निर्यात के नियंत्रण और नियमन का प्रयास किया गया है। हथियारों के व्यापार के दुष्प्रभाव को कम करना है तो इसके लिए आवश्यक है कि हथियारों से जुङे सभी पहलुओं को इस संधि के दायरे में लाया जाए। साथ ही, जहाँ तक संभव हो फ़ायदा कमाने के लिए निर्मित हथियारों के कारोबार को ही प्रतिबंधित कर दिया जाए क्योंकि जब एक बार हथियार बना दिए जाते हैं तो उनके पीछे ये मंशा होती है कि उनका कहीं ना कहीं इस्तेमाल ज़रूर हो और जब उनका इस्तेमाल होने लगता है तो ज़्यादा संख्या और मात्रा में हथियारों का निर्माण जारी रहता है। यही हथियार आतंकवादियों और आतंकी संगठनों तक पहुंच कर आतंकवाद के प्रसार में मददगार होते हैं।


Comments

  1. आतंकवाद के वीभत्स और विकराल स्वरुप का सामना साल 2014 में विश्व को करना पङा। सिडनी कैफे कांड,पेशावर स्कूल गोलीबारी,असम में बोडो हिंसा और बेंगलुरु ब्लास्ट सिर्फ दिसंबर माह में होने वाली आतंकी घटनाओं के उदाहरण हैं। इन घटनाओं से अलग नाइजीरिया,सीरिया,इराक और अफगानिस्तान जैसे देश पूर्णतः आतंकवाद की गिरफ्त में हैं। हथियार और पैसा दो ऐसे कारक तत्व हैं जिसके दम पर आतंकवाद विकसित होता है और अपनी जङें मजबूत करता है। आतंकवाद की समाप्ति के लिए राष्ट्रों द्वारा एकल स्तर पर प्रयास के साथ-साथ इसके खात्मे के लिए सभी वैश्विक और स्थानिक संगठनों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र शस्त्र व्यापार संधि इसी प्रयास का एक हिस्सा है।

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