दक्षेस देशों का 18वां शिखर सम्मेलन
l2014112659591

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन यानी दक्षेस का 18वां शिखर सम्मेलन 27 नवंबर 2014 को संपन्न हो गया। 19वां शिखर सम्मेलन पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में 2016 में होगा। काठमांडू से लगभग 20 किलोमीटर दूर धुलीखेल में तीन दिनों तक चले 18वें दक्षेस सम्मेलन में दक्षेस देशों के प्रमुख ने हिस्सा लिया,जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोब्गे, श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे, मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन, नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कुमार कोइराला शामिल थे।इसके अलावा नौ पर्यवेक्षक देशों के प्रतिनिधि भी मौजूद थे, ये देश हैं - अमेरिका, ऑस्टिेलिया, चीन, यूरोपीय यूनियन, जापान, मॉरिशस, कोरिया, म्यांमार।
सम्मेलन में वार्ता के तत्व
तीन साल बाद हो रहे इस सम्मेलन में भारत ने प्रस्ताव दिया था कि दक्षेस देशों के बीच बेहतर कनेक्टिविटी के लिए सभी देशों को सड़क, रेल मार्गों और बिजली के जरिये संपर्क बढ़ाना चाहिए। यह कदम दक्षेस देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को नए स्तर पर ले जाने में सहायक हो सकता था। लेकिन, पाकिस्तान ने भारतीय प्रस्ताव का विरोध किया और मामला खत्म हो गया। वैसे भारत ने पहले ही दक्षेस के विभिन्न सदस्य देशों से द्विपक्षीय संपर्क समझौते करने शुरू कर दिए हैं और नेपाल के साथ हुआ मोटर वाहन समझौता उसी का एक उदाहरण है।
दक्षेस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अगर हम एक-दूसरे के गांवों-कस्बों को रोशन कर सकें, तो हम अपने पूरे क्षेत्र के लिए बेहतर कल का निर्माण कर सकते हैं।सम्मेलन के अंत में दक्षेस देशों की बैठक में ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए समझौता किया गया। इस समझौते के कारण सभी देशों की आधिकारिक सरकारी और निजी क्षेत्र की उत्पादन इकाइयाँ बिजली ख़रीदने और बेचने के लिए स्वतंत्र होंगी। इस समझौते से पूरे क्षेत्र में बिजली की कनेक्टिविटी और ट्रांसमिशन में वृद्धि होगी। धीरे-धीरे अंतर-क्षेत्रीय कनेक्टिविटी भी बढ़ेगी, साथ ही धीरे-धीरे बिजली पर लगने वाले कर और शुल्क को ख़त्म कर दिया जाएगा। वर्ष 2016 में 'सार्क उपग्रह' के प्रक्षेपण की योजना की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा यह उपग्रह भारत की ओर से दक्षिण एशियाई देशों को तोहफा होगा, जिससे सभी लाभान्वित होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षेस शिखर सम्मेलन के दौरान आतंकवाद से निपटने के लिए एकजुट प्रयासों की हिमायत की और दक्षेस से आतंकवाद के खात्मे पर प्रतिबद्धता निभाने को कहा। मुंबई हमलों की छठी बरसी के अवसर पर मोदी ने आतंकवाद और अंतरदेशीय अपराधों से निपटने के लिए ठोस प्रयासों का आह्वान किया।
 दक्षेस की स्थति
दक्षेस एक अंतर क्षेत्रीय मंच के साथ-साथ एक आर्थिक सहयोग मंच भी है। आर्थिक मंच एक तरह से राजनीतिक संबंधों को मज़बूत करने का मंच भी होता है। दक्षेस दक्षिण एशियाई देशों को वह मंच तो मुहैया कराता ही है, जिसका इस्तेमाल वे आपसी संबंधों को मज़बूत करने में कर सकते हैं। सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आपसी मतभेद के मुद्दे पर बात करने का मौका भी मिलता है। लेकिन, दक्षेस का उस तरह से विकास नहीं हुआ जिस तरह से आसियान या फिर यूरोपीय यूनियन जैसे दूसरे मंचों का हुआ है। दक्षेस इन सबसे पीछे रह गया है। इसमें शामिल देशों के बीच आपसी कारोबार उनके कुल कारोबार का पांच फ़ीसदी भी नहीं होता है। दक्षेस जैसे मंच का पूरा विकास नहीं हुआ, इसके कई कारण हैं लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच असहज संबंध इसकी सबसे बड़ी वजह है।दोनों इस क्षेत्र के शीर्ष के दो देश हैं, लेकिन दोनों के बीच कारोबार सामान्य तौर पर नहीं होता।
दक्षेस और भारत
दक्षेस देशों के कुल वैश्‍विक व्‍यापार का 5 प्रतिशत व्‍यापार आपस में होता है। यहां तक कि इस कम स्‍तर पर भी इस क्षेत्र के आंतरिक व्‍यापार के 10 प्रतिशत से भी कम व्‍यापार दक्षेस मुक्‍त व्‍यापार क्षेत्र के अंतर्गत होता है। फिर भी, दक्षिण एशिया के देश धीरे-धीरे निकट आ रहे हैं। भारत और बांग्‍लादेश ने रेल, सड़क, बिजली और पारेषण के जरिये अपने संपर्कों को बढ़ाया है। भारत और नेपाल ने ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग के एक नए युग में प्रवेश कर लिया है और भारत और भूटान अपने पुराने संबंधों को मजबूत बना रहे हैं। भारत ने श्रीलंका के साथ एक मुक्‍त व्‍यापार करार करके व्यापार का स्‍वरूप बदल दिया है। भारत द्वारा शीघ्र ही मालदीव की तेल की आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए एक नई व्‍यवस्‍था आरंभ की जाएगी । दूरी और कठिनाइयों के बावजुद भारत और अफगानिस्‍तान के रिश्ते प्रगाढ हुए हैं। भारत और पाकिस्‍तान के बीच बस और ट्रेन लोगों के आपसी मेलजोल का सतत जरिया बने हुए हैं।भारत ने पांच दक्षिण एशियाई भागीदारों को उनके सामान के लिए 99.7 प्रतिशत शुल्‍क मुक्‍त पहुँच प्रदान की है और अन्‍य को भी देने के लिए तैयार है। भारत ने पिछले दशक में दक्षिण एशिया के देशों को लगभग 8 बिलियन यूएस डॉलर की सहायता प्रदान की है। भारत अब दक्षेस देशों के लिए 3 से 5 वर्ष का व्‍यावसायिक वीजा प्रदान करेगा। दक्षेस व्‍यावसायिक पर्यटक कार्ड के जरिये इसे  व्‍यवसायों के लिए और आसान बनाया जाएगा।
सूचना प्रौद्योगिकी ने गुणवत्‍तापरक शिक्षा प्राप्‍त करने में आने वाली सभी बाधाओं को दूर कर दिया है। भारत अपने दक्षिण एशियाई छात्रों को ऑनलाइन पाठ्यक्रमों तथा ई-लाइब्रेरी के जरिये जोड़ने के लिए तैयार है। भारत राष्‍ट्रीय ज्ञान नेटवर्क की स्‍थापना कर दक्षेस देशों को इसमें सहयोगी बनाने का इच्छुक है। एक दक्षिण एशियाई विश्‍वविद्यालय ने नई दिल्‍ली में साकार रूप ले लिया है। आपदा प्रबंधन में भारत अपनी क्षमता और विशेषज्ञता का लाभ दक्षिण एशिया के देशों को उपलब्‍ध कराने के लिए तत्पर है। भारत द्वारा एक उपग्रह 2016 में सार्क दिवस तक प्रक्षेपित करने की योजना है,जो दक्षेस के सभी देशों के लिए शिक्षा, टेलीमेडिसिन, आपदा से निपटने, संसाधन प्रबंधन, मौसम पूर्वानुमान और संचार जैसे क्षेत्रों में लाभकारी होगा। आर्थिक विकास एवं अभिशासन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग करने की सामूहिक क्षमता को बढ़ाने के लिए भारत में एक सम्‍मेलन का भी आयोजन किया जाएगा।

स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में, भारत टीबी और एचआईवी के लिए सार्क रीजनल सुपर रेफरेंस लैबोरेटरी स्‍थापित करने में वित्तपोषण करेगा। दक्षिण एशिया के बच्‍चों के लिए भारत फाइव-इन-वन टीका प्रदान कर रहा है।भारत पोलियो मुक्‍त देशों की मॉनीटरिंग और निगरानी में सहायता करने और जहां इसका कोई मामला पुन: सामने आएगा, वहां टीका उपलब्‍ध कराने के प्रति वचनबद्ध है। चिकित्‍सीय उपचार के लिए भारत आए  रोगी तथा एक परिचर के लिए भारत तुरंत मेडिकल वीजा प्रदान करेगा।

  दक्षेस और चीन
चीन एक पर्यवेक्षक देश के तौर पर दक्षेस से 2005 में जुड़ा , लेकिन पर्यवेक्षक के तौर पर उसे दक्षेस से बहुत ज़्यादा उम्मीद नहीं हो सकती।वैसे ये चीन के लिए बेहतर भी है क्योंकि वह दक्षेस के मंच का इस्तेमाल दक्षेस देशों से अपने संबंधों को बढ़ाने के लिए करता है।चीन दक्षेस का पूर्ण सदस्य बनना चाहता है क्योंकि इससे ना केवल चीन को फ़ायदा होगा बल्कि दक्षेस देशों को भी होगा।चीन दक्षेस की सदस्यता के लिए पात्रता भी पूरी करता है। चीन का दक्षेस के आठ सदस्य देशों में से पांच के साथ कारोबारी रिश्ते हैं।चीनी अधिकारी इसलिए दक्षेस प्लस वन देश या फिर दक्षेस में डायलॉग पार्टनर की भूमिका के लिए दबाव डालते रहे हैं, क्योंकि चीन दक्षेस के मंच पर बड़ी भूमिका निभाना चाहता है। मौजूदा समय में चीन का दक्षेस का पूर्ण सदस्य देश बनना मुश्किल है,लेकिन दक्षेस प्लस या दक्षेस प्लस वन जैसी व्यवस्था के ज़रिए चीन जुड़ सकता है।


Comments