जीएसएलवी मार्क-3


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आंध्र प्रदेश के सतीश धवन स्पेस सेंटर (श्रीहरिकोटा) से 5 जून 2017 को अपना सबसे शक्तिशाली भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान जीएसएलवी मार्क-3 डी-1 सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। इसे बनाने में 160 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इस यान का कुल वजन 460 टन है। इसका उपनाम 'फैट बॉय' रखा गया है। इससे पहले पीएसएलवी को इसरो ने "वर्कहॉर्स" तो मार्क-2 को "नॉटी ब्वॉय" नाम दिया था। मार्क-3 के प्रक्षेपण से साथ भारत, रूस, यूरोपीय संघ, अमेरिका, जापान और चीन के भारी रॉकेट वाले देशों के क्लब का छठा देश बन गया है। यान के साथ 3136 किलोग्राम के जीसैट-19 उपग्रह को प्रक्षेपित किया गया।
                   

विशिष्टताएं
Ø  यह 4 टन वजनी संचार उपग्रहों को ऊपरी कक्षा में पहुंचाने की क्षमता रखता है।
Ø  यह मानव मिशन के लिए पृथ्वी की निचली कक्षा में 10 टन वजनी कैप्सूल को भी ले जा सकता है।
Ø  इसरो जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट में तीसरे चरण में गैस कंबस्टर साइकल का इस्तेमाल करता है, जिसमें घरेलू स्तर पर विकसित सीई-20 का इस्तेमाल किया गया है। इस डिजाइन का विकास महेंद्रगिरि स्थित लिक्विड प्रोपलशन सिस्टम सेंटर (एलपीएससी) ने किया है।
Ø  जीएसएलवी मार्क-3 से इसरो को अपने भारी उपग्रहों के लिए विदेशी रॉकेटों की जरूरत नहीं पड़ेगी।
Ø  जीएसएलवी मार्क-3 न सिर्फ भारी देसी उपग्रहों के प्रक्षेपण में देश के पैसे बचाएगा, बल्कि अन्य देशों के चार टन श्रेणी वाले उपग्रहों को प्रक्षेपित कर भारत के अंतरिक्ष बाजार को और विस्तृत करेगा।
जीएसएलवी मार्क-3 की कार्य प्रणाली
·         पहले चरण में बड़े बूस्टर जलते हैं।
·         उसके बाद विशाल सेंट्रल इंजन अपना काम शुरू करता है जो रॉकेट को और ऊंचाई तक ले जाते हैं।
·         उसके बाद बूस्टर अलग हो जाते हैं और हीट शील्ड भी अलग हो जाती है। अपना काम करने के बाद 610 टन का मुख्य हिस्सा अलग हो जाता है।
·         फिर क्रायोजेनिक इंजन काम करना शुरू करता है। क्रायोजेनिक इंजन में ईंधन के तौर पर द्रव ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का इस्तेमाल होता है। फिर क्रायोजेनिक इंजन अलग होता है
·          उसके बाद संचार उपग्रह अलग होकर अपनी कक्षा में पहुंचता है।
जीसैट-19 उपग्रह
v  जीसैट-19 अंतरिक्ष में मौजूद पुराने 6 से 7 संचार उपग्रहों के बराबर है। वर्तमान समय में कक्षा में मौजूद 41 भारतीय उपग्रहों में से 13 संचार उपग्रह हैं।
v  जीसैट-19 की आयु 10 साल है।
v  जीसैट-19 में स्वदेशी लिथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल किया गया है जो आगे चलकर कार या बस में इस्तेमाल हो सकती हैं।
v  जीसैट-19 में कोई ट्रांसपोंडर नहीं है। इसमें मल्टीपल फ्रिक्वेंसी बीम के जरिए डाटा को डाउनलिंक किया जाएगा। इस पर जियोस्टेशनरी रेडिएशन स्पेक्ट्रोमीटर लगा है जो उपग्रह पर स्पेस रेडिएशन और चार्ज पार्टिकिल्स के असर पर नजर रखेगा।

v  इससे भारत में हाई स्पीड इंटरनेट की शुरुआत होगी।

Comments