19 अप्रैल 2017 को लोकसभा ने 123वां संविधान संशोधन विधेयक 2017 और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (निरसन) विधेयक 2017
को मंजूरी प्रदान की। इस संविधान संशोधन के जरिए मजबूत पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन
होगा। विदित हो कि मार्च 2017 में केंद्रीय मंत्रिमंडल
द्वारा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग हेतु राष्ट्रीय सामाजिक और शैक्षणिक
पिछड़ा वर्ग आयोग नामक एक संवैधानिक संस्था स्थापित करने को मंजूरी प्रदान की गई थी।
यह आयोग संवैधानिक दर्जे के साथ पिछड़ा वर्ग आयोग का स्थान लेगा।
इससे सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से
पिछड़े वर्गों के समग्र कल्याण को बढ़ावा मिलेगा। ज्ञातव्य है कि भारतीय संविधान के
अनुच्छेद 338 में ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग’ तथा अनुच्छेद 338 ए में ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ का प्रावधान किया गया है।
किस जाति को पिछड़े वर्ग में रखा जाए
और किसे बाहर किया जाए, इस संबंध में यह आयोग
सिफारिशें करेगा, जिन्हें मानना सरकार के लिए बाध्यकारी
होगा। हालांकि इस बारे में अंतिम फैसला संसद करेगी। नए आयोग में एक अध्यक्ष,
उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होंगे। तीनों सदस्य पिछड़े वर्ग के
लोगों की शिकायतें सुनेंगे।
इससे संविधान में नया अनुच्छेद 338 बी जोड़ा जाएगा। इसके द्वारा राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग
की रचना, नियम एवं कार्यों के बारे में जानकारी दी जाएगी। इसके
तहत अनुच्छेद 342 ए भी संविधान में जोड़ा जाएगा। इससे
राष्ट्रपति को राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े
वर्गों को सूची को अधिसूचित करने का अधिकार प्राप्त होगा। किसी राज्य के मामले में,
राज्यपाल के साथ परामर्श के बाद ही राष्ट्रपति यह अधिसूचना जारी कर
सकेंगे। इस नए अनुच्छेद के अनुसार संसद किसी वर्ग को पिछड़ा वर्ग सूची में जोड़ सकती
है अथवा उसे निकाल सकती है।
यह कदम उन मांगों के बाद उठाया गया है
जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय आयोग और अनुसूचित जनजाति के
लिए राष्ट्रीय आयोग जिस तरह से शिकायतें सुनता है उसी तरह पिछड़ा वर्ग के लिए
राष्ट्रीय आयोग को ओबीसी वर्ग की शिकायतें सुनने की अनुमति देने के लिए संवैधानिक
दर्जा दिया जाए।
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