अप्रैल
2017 में चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे हुए। यह महात्मा गांधी का भारत में
पहला सत्याग्रह था। गांधी जी द्वारा 1917 में संचालित चंपारण सत्याग्रह न सिर्फ
भारतीय इतिहास बल्कि विश्व इतिहास की एक ऐसी घटना है जिसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद
को खुली चुनौती दी थी। वे 10 अप्रैल 1917 को जब बिहार आए तो उनका मकसद चंपारण के
किसानों की समस्याओं को समझना व उसका निदान करना था।
एक
स्थानीय किसान राजकुमार शुक्ल ने कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन (1916) में अंग्रेजों
द्वारा जबरन नील की खेती कराई जाने के संदर्भ में शिकायत की थी। शुक्ल का आग्रह था
कि गांधीजी इस आंदोलन का नेतृत्व करें। निलहों के विरुद्ध राजकुमार शुक्ल 1914 से
ही आंदोलन चला रहे थे। लेकिन 1917 में गांधी जी के सशक्त हस्तक्षेप ने इसे व्यापक
जन आंदोलन बनाया। आंदोलन की अनूठी प्रवृत्ति के कारण इसे राष्ट्रीय बनाने में
गांधीजी सफल रहे।
गांधी
जी ने 15 अप्रैल 1917 को मोतिहारी पहुंचकर 2900 गांवों के तेरह हजार किसानों की
स्थिति का जायजा लिया। चंपारण के किसानों ने गांधी जी को जानकारी दी कि वे अपनी
भूमि के प्रत्ये क बीस हिस्सोंक में से तीन पर अपने भूमि मालिकों के लिए खेती करने
के कानून से बंधे हैं। इस व्य वस्थास को तिनकठिया कहा जाता था।
गांधी
जी की गतिविधि स्थानीय अधिकारियों को पसंद नहीं आई। उन्होंने गांधी जी को इस जांच
से रोकने की भरसक कोशिश की लेकिन गांधी जी अपने कार्य में लगे रहे। ब्रिटिश सरकार
ने गांधी जी की इस पहल को विफल बनाने के लिए धारा 144 के तहत सार्वजनिक शांति भंग करने
का नोटिस भी भेजा। लेकिन गांधी जी इससे तनिक भी विचलित नहीं हुए। गांधीजी के
शांतिपूर्ण प्रयास का अनुचित ढंग से दमन करना ब्रिटिश सरकार के लिए भी कठिन सिद्ध
हो रहा था।
बाध्यता
के कारण बिहार के तत्कालीन डिप्टी गर्वनर एडवर्ड गेट ने गांधीजी को वार्ता के लिए
बुलाया। किसानों की समस्याओं की जांच के लिए ‘चंपारण एग्रेरियन कमेटी’
बनाई
गई। सरकार ने गांधीजी को भी इस समिति का सदस्य बनाया। इस समिति की अनुशंसाओं के
आधार पर तीनकठिया व्यवस्था की समाप्ति कर दी गई। किसानों के लगान में कमी लाई गई
और उन्हें क्षतिपूर्ति का धन भी मिला।
हालांकि
किसानों की समस्याओं के निवारण के लिए ये उपाय काफी नहीं थे। फिर भी पहली बार
शांतिपूर्ण जनविरोध के माध्यम से सरकार को सीमित मांगों को स्वीकार करने पर सहमत
कर लेना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।
चंपारण
आंदोलन की 100वीं वर्षगांठ को मनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 10
अप्रैल 2017 को नई दिल्ली में एक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया जिसका शीर्षक “स्वच्छाग्रह ‘बापू को कार्यांजलि’ – एक अभियान, एक
प्रदर्शनी” था। बिहार सरकार ने भी एक साल चलने वाले
कार्यक्रमों की श्रृंखला को इस दिन शुरू किया।
Comments
Post a Comment